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SPECIAL: कोरबा में धान नहीं बेच पाने से किसानों के सिर चढ़ा 4 करोड़ का लोन - Loans to farmers in Korba

छत्तीसगढ़ में इस साल रिकॉर्ड धान खरीदी की गई है, लेकिन पूरे प्रदेश में कई हजार ऐसे किसान हैं जो धान नहीं बेच पाए. कोरबा में भी 3 हजार किसानों ने धान नहीं बेचा है. इन किसानों पर 4 करोड़ रुपये से ज्यादा का लोन बकाया है. ETV भारत ने कुछ किसानों से बात कर धान नहीं बेच पाने की वजह जानने की कोशिश की है. देखिये ये विशेष रिपोर्ट...

farmers who are not sell paddy in korba are in debt
कोरबा में धान खरीदी

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Published : Feb 15, 2021, 9:16 PM IST

कोरबा:छत्तीसगढ़ सरकार ने इस साल रिकॉर्ड तोड़ धान खरीदी की है. पूरे प्रदेश में 92 लाख मीट्रिक टन धान की खरीदी हुई है. 2020-21 में रिकॉर्ड 95.38 प्रतिशत पंजीकृत किसानों ने धान बेचा है, लेकिन पंजीयन कराने के बाद भी कोरबा जिले के 3 हजार से ज्यादा किसानों ने धान नहीं बेचा. इनमें से ज्यादातर किसानों ने उत्पादन में कमी और घर में ही चावल की जरूरत के कारण धान बेचने में रुचि नहीं ली है. ऐसे में अब इन सभी किसानों पर 4 करोड़ से अधिक के कर्ज का बोझ है. ETV भारत ने जब इन किसानों से धान न बेच पाने की वजह जानने की कोशिश की तो अलग-अलग वजह सामने आई.

किसानों के सिर चढ़ा 4 करोड़ का लोन

कुछ किसानों का कहना है कि उत्पादन कम होने की वजह से उन्होंने धान बेचा तो कुछ ने रकबा कम होने की वजह बताई. तो कुछ किसान ऐसे भी थे जिन्होंने घर पर ही चावल की जरूरत की वजह से धान नहीं बेचा.

  • धान की कुल खरीदी- 13 लाख 52 हजार 750 क्विंटल
  • खरीदे गए धान का मूल्य - 2 अरब 52 करोड़ 73 लाख 13 हजार 792 रुपए
  • कुल ऋण वितरण - 42.58 करोड़ रुपए
  • कुल वसूली - 44.39 करोड़ रुपए
  • वसूली योग्य बकाया राशि - 4.29 करोड़ रुपए
    कोरबा में धान खरीदी

किसानों की बढ़ी मुसीबत

कोरबा में खरीफ वर्ष 2020-21 में 252 करोड़ के धान खरीदी हुई है. इसके एवज में किसानों को 45.30 करोड़ रुपए के ऋण का वितरण किया गया था. अच्छी बारिश और बेहतर उत्पादन के बाद भी 4.29 करोड़ ऋण की राशि बकाया है. जिसकी वसूली किसानों से की जानी है. जिन किसानों की फसल कीट की चपेट में आई उनका उत्पादन भी कम हो गया. बीमा योजना के अनुसार की कीट के प्रकोप से फसल नुकसान का मुआवजा किसानों को नहीं मिलता. ऐसी स्थिति में किसानों ने जो कर्ज सहकारी बैंक से लिया है उसे चुकाना पड़ता है.

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लोन के डर से नहीं बेचा धान

सहकारी बैंक किसानों को रकबे के आधार पर लोन का वितरण करता है. पंजीयन कराते ही उन्हें खाद और नकद लोन मिल जाता है. जब किसान धान उगाने और इसकी कटाई के बाद उसे मंडियों में बेचते हैं, तब नियमों के अनुसार जितना समर्थन मूल्य उन्हें सरकार की तरफ से मिलता है. उसमें से ऋण की राशि काट ली जाती है. कटने के बाद की राशि किसानों के खातों में डाल दी जाती है. ऐसे में जिन किसानों का उत्पादन कम हुआ है, वह ऋण की राशि कट जाने के डर से धान बेचने से पीछे हट जाते हैं. इन किसानों के सामने भी अब कर्ज का भुगतान किए जाने की चुनौती है.

रकबा घटना भी बड़ी वजह

इस वर्ष कई किसानों के रकबे में भी कमी आई है. विपक्ष भी इसे लेकर सरकार पर हमलावर है. जिन किसानों का रकबा पिछले वर्ष से कम हो गया उनसे कम धान की खरीदी हुई है. इस वजह से उनका मुनाफा कम हुआ है. यह भी ध्यान नहीं बेचने के पीछे की एक मुख्य वजह है.

किसानों ने नहीं की दावा आपत्ति

फसल बर्बाद होने पर मुआवजा नहीं मिलने की वजह से किसान लोन चुकाने में सक्षम नहीं है. कृषि विभाग के उपसंचालक जनकदेव शुक्ला का कहना है कि कीट से नुकसान को समय रहते ही नियंत्रित करने का पूरा प्रयास किया गया था. इस पर नियंत्रण भी पा लिया गया था. अनावरी रिपोर्ट के अनुसार फसल की पैदावार जिले में पर्याप्त हुई है. बीमा कराने वाले किसानों ने अब तक दावा आपत्ति नहीं की है इसलिए उन्हें मुआवजा वितरण नहीं किया गया है. ऋण वसूली एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, जो सहकारी विभाग से होती है.

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