कोरबा :कोरबा की तीन बहनों ने वो किया है जिसे समाज शायद अच्छा ना मानें. लेकिन एक पिता की इच्छा को पूरी करने के लिए इन बेटियों ने रूढ़ीवादी परंपरा को तोड़कर अपने पिता का अंतिम संस्कार किया. मुक्तिधाम पहुंचकर इन बेटियों ने अपने पिता की चिता को मुखाग्नि (Daughters performed last rites of father in Korba) दी. जिसने भी यह नजारा देखा उसकी आंखें नम हो गई.
कोरबा की हिम्मतवाली बेटियां, जिन्होंने निभाया बेटे का फर्ज - Korba Motisagar Para Muktidham
कोरबा में तीन बेटियों ने समाज को नई राह दिखाई है. बेटियों ने अपने पिता का अंतिम संस्कार कर सालों पुरानी चली आ रही परंपरा को तोड़ा (Courageous daughters of Korba) है.
पिता ने कभी नहीं किया भेदभाव :किशोर ने बताया कि "इसे लेकर हमने वरिष्ठ जनों से चर्चा की. मुखाग्नि बेटी से दिलवाने की बात पर जितेंद्र की पत्नी रश्मि बहन के साथ तीनों बेटियों ने अपनी रजामंदी दी. हालांकि समाज के कुछ लोग इसे लेकर तरह-तरह की बातें भी करेंगे. लेकिन हम सभी ने मिलकर निर्णय लिया कि मुखाग्नि बेटियों से ही दिलवा आएंगे. जीते जी जितेंद्र ने कभी भी अपनी बेटियों को बेटों से कम नहीं समझा. उसने बेटियों को बेटों की तरह ही पालकर बड़ा किया है.''
कहां हुआ अंतिम संस्कार :मृतक जितेंद्र का अंतिम संस्कार शहर के मोतीसागर पारा मुक्तिधाम (Korba Motisagar Para Muktidham) में किया गया. सीतामढ़ी से जब शव यात्रा निकली. तब सभी राहगीरों के लिए यह कुछ नया सा था. ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है जब बेटियां पिता के अर्थी को कंधा दें. शव यात्रा मुक्तिधाम तक पहुंची और इसके बाद विधि-विधान से बेटियों ने पिता के क्रिया कर्म को पूरा किया.