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गोंड समाज ने शव दफनाने, शराबबंदी और दहेज प्रतिबंधित करने का लिया फैसला

कवर्धा में गोंड़ समाज ने प्रकृतिक को बचाने और समाज की नई राह पर ले जाने के लिए कई फैसले लिए हैं. समाज के लोगों ने पेड़ को कटने से बचाने के लिए समाज में अग्नि संस्कार को प्रतिबंधित कर दिया है.

Gond society imposes ban on fire ritual to save nature
गोंड समाज की बैठक

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Published : Mar 9, 2021, 4:44 PM IST

कवर्धा : प्रकृति को बचाने और समाज को बेहतर राह से जोड़ने के लिए गोंड समाज ने 50 ऐतिहासिक फैसला लिया है. समाज ने दहेज प्रथा, कार्यक्रम में शराब बंदी और अग्नि संस्कार को बंद करने जैसे फैसले लिए हैं.

गोड समाज ने 6 मार्च को जिला मुख्यालय के सरदार पटेल मैदान मे एकदिवसीय परिचय सम्मेलन कार्यक्रम का आयोजन किया था. कार्यक्रम में जिले के चारों ब्लॉक के समाज के लोग कार्यक्रम में मौजूद थे. इस दौरान समाज के पदाधिकारियों ने समाज में फैली बुराई और प्रकृतिक को नुकसान से बचाने के लिए 60 पन्नों के नियम और समाज में कानून बनाने का प्रस्ताव रखा. समाज के लोगों ने 50 नियमों पर सहमति जताते हुए बुजुर्ग और पदाधिकारियों के सामने मुहर लगाई गई.

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प्रकृति की रक्षा जरूरी

गोंड समाज के महासचिव सिद्दराम मेरावी ने बताया कि गोंड समाज प्रकृतिक प्रेमी है. हमारे पूर्वज पेड़, जंगलों की सेवा करते आए हैं. यही कारण है वे लोगों किसी की मौत होने पर अग्नि संस्कार नहीं करते हैं. बल्कि मिट्टी संस्कार करते हैं ताकि पेड़ों को काटकर जलाना न पड़े. पिछले कुछ समय से लोगों इन नियमों को दरकिनार कर अग्नि संस्कार करने लगे थे. जिसे बंद कराया गया.

समाज के लिए गए फैसले

  • अग्नि संस्कार प्रतिबंधित किया गया. विषम परिस्थितियों में समाज के निर्णय अनुसार जलाया जा सकता है.
  • खुशी या दुख के कार्यक्रमों में शराब का सेवन पूरी तरह प्रतिबंधित किया गया.
  • पूजा में शराब के उपयोग भी प्रतिबंध कर महुआ का उपयोग किया जाने नियम बनाया गया.
  • शादी में दहेज प्रथा को पूरी तरह बंद करने के निर्णय लिए गए.
  • जिले के सभी गोंड़ एक ही माने जाएंगे. अब राज गोंड़, ध्रुव गोंड़ सभी एक होंगे, रोटी-बेटी भी चलेगा.
  • बारात में लोगों की संख्या कम कर दी है, केवल 50 लोग ही बारात में जाएंगे और सगाई में 20 लोग.
  • समाज के बच्चों के लिए भर्ती परीक्षा की तैयारी करने विशेष कोचिंग कक्षा संचालित की जाएगी.


गोंड़ समाज प्रकृति से जुड़ा इसलिए प्रकृति की रक्षा

समाज के महासचिव सिद्दराम मेरावी का कहना है कि गोंड़ समाज की रीति नीति, संस्कृति और परंपराएं प्रकृति से जुड़ी हैं. सदियों पहले शवों को दफनाया ही जाता था. अब उस परंपरा को फिर से शुरू करना है. इस समय जरूरी है कि पेड़ कम से कम कटें, प्रकृति का कम नुकसान हो इसलिए शवों को दफनाना ज्यादा सही होगा. निर्णय समाज के लोगों ने लिया है.

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