जगदलपुर:बस्तर में भी गोंचा पर्व (Goncha festival) धूमधाम से मनाया जाता है. करीब 600 वर्षों से इस परंपरा को यहां के लोग बड़े उत्साह से निभा रहे हैं. तीन विशालकाय रथों पर सवार भगवान जगन्नाथ, माता सुभद्रा और बलभद्र की रथयात्रा (Lord Jagannath rathyatra) निकाली जाती है. भगवान जगन्नाथ को बस्तर की पांरपरिक तुपकी (tupki) से सलामी दी जाती है.
बस्तर में आरण्यक ब्राह्मण समाज द्वारा पिछले 600 वर्षों से गोंचा का पर्व मनाया जा रहा है. रियासत काल से चली आ रही यह परंपरा आज भी कायम है. बस्तर के विश्व प्रसिद्ध दशहरा के बाद गोंचा पर्व को दूसरा बड़ा पर्व माना जाता है. करीब 600 वर्ष पूर्व बस्तर के तत्कालीन महाराज पुरषोत्तम देव पदयात्रा कर पुरी कर गये थे. जिसके बाद पुरी के तत्तकालीन राजा गजपति द्वारा उन्हें रथपति की उपाधि दी गई थी. महाराज पुरूषोत्तम देव को उनकी भक्ति के फलस्वरूप देवी सुभद्रा का रथ दिया गया था. प्राचीन समय में बस्तर के महाराजा रथ यात्रा के दौरान इस रथ पर सवार होते थे. तब से ही बस्तर में यह पर्व पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता रहा है.
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'तुपकी' की सलामी
खास अंदाज में मनाए जाने वाले गोंचा पर्व में रथयात्रा के साथ बांस से बनी तुपकी (बांस की बनी बंदूक) की आवाज रथ यात्रा के आनंद को दोगुना कर देती है. संभवत: पूरे भारत में तुपकी चालन की परंपरा यहां के अलावा और कहीं नहीं दिखती. भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र के रथारूढ़ होने पर तुपकी (बांस से बनी बंदूक) से सलामी देने की परपरा बस्तर में है. रथ यात्रा के दौरान भगवान को जब रथ पर विराजित किया जाता है, उस वक्त परंपरा निभाते हुए उन्हें तुपकी से सलामी दी जाती है.