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Bastar Dussehra: मावली परघाव रस्म के जरिए दंतेवाड़ा से मावली माता दशहरा मनाने जगदलपुर पहुंची - बस्तर के राजकुमार कमलचंद भंजदेव

बस्तर दशहरा (bastar dussehra) में हर रोज एक-एक रस्म पूरी की जा रही है. इसी कड़ी में बीती रात मावली परघाव की रस्म पूरी की गई. बस्तर के राजकुमार कमलचंद भंजदेव (Prince Kamalchand Bhanjdev of Bastar) ने आतिशबाजी और फूलों से मावली देवी का भव्य स्वागत किया.

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विश्व प्रसिध्द बस्तर दशहरा पर्व

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Published : Oct 15, 2021, 8:00 AM IST

Updated : Oct 15, 2021, 10:21 AM IST

जगदलपुर:विश्व प्रसिध्द बस्तर दशहरा पर्व (bastar dussehra) की महत्वपूर्ण मावली परघाव (Mavli Parghan ) की रस्म देर रात अदा की गई. दो देवियों के मिलन के इस रस्म को जगदलपुर दंतेश्वरी मंदिर के प्रांगण में अदा किया गया. परम्परानुसार इस रस्म में शक्तिपीठ दंतेवाड़ा से मावली देवी की क्षत्र और डोली को जगदलपुर के दंतेश्वरी मंदिर (Danteshwari Mandir) लाया जाता है. जिसका स्वागत बस्तर के राजकुमार और बस्तरवासियों के द्वारा किया जाता है. हर साल की तरह इस साल भी यह रस्म धूमधाम से मनाई गई. नवरात्रि की नवमी में मनाये जाने वाले इस रस्म को देखने बड़ी संख्या में लोगों का जन सैलाब उमड़ पड़ा. कोरोना काल के चलते दो साल के बाद इस रस्म अदायगी के दौरान हजारों की संख्या में भीड़ देखने को मिली.

विश्व प्रसिध्द बस्तर दशहरा पर्व

दंतेवाड़ा से पहुंची माता की डोली और क्षत का बस्तर के राजकुमार ने भारी आतिशबाजी और फूलों से भव्य स्वागत किया. दंतेश्वरी मंदिर के प्रांगण में मनाए जाने वाले इस रस्म को देखने इस साल हजारों की संख्या में लोग पहुंचे. 600 साल से इस रस्म को धूमधाम से मनाया जा रहा है. तत्कालीन बस्तर के महाराजा रुद्र प्रतापदेव माई की डोली का भव्य स्वागत करते थे. वहीं परम्परा आज भी बखूभी निभाई जाती है.

मावली परघाव

बस्तर दशहराः धूमधाम से मनाई गई काला जादू निशा जात्रा की रस्म

बस्तर राजकुमार कमलचंद भंजदेव ने बताया कि नवमी के दिन दंतेवाड़ा से आई मावली देवी की डोली का स्वागत करने राजा, राजगुरू और पुजारी नंगे पांव राजमहल से मंदिर के प्रांगण तक आते है. उनकी अगवानी और पूजा अर्चना के बाद देवी की डोली को कंधों पर उठाकर राजमहल स्थित देवी दंतेश्वरी के मंदिर में लाकर रखा जाता है. दशहरे के समापन पर इनकी ससम्मान विदाई होती है.

राजकुमार कमलचंद भंजदेव ने किया स्वागत

दंतेवाड़ा में विराजमान मावली माता को जगदलपुर में विराजमान दंतेश्वरी देवी (Danteshwari Devi) से मिलन कराने की इस परम्परा को कई संदियों से यूँ ही बस्तर के राजाओं द्वारा निभाया जाता रहा है. दोनों देवियों के मिलन के बाद यह रस्म पूर्ण होती है. इस रस्म की खास बात ये होती है कि मावली माता के डोली के स्वागत के लिए हजारों की संख्या में लोगों का जनसैलाब उमड़ पड़ता है और माता के जय जयकारों के साथ डोली का स्वागत किया जाता है. इस रस्म का मुख्य सार दंतेश्वरी देवी द्वारा मावली माता को दशहरा पर्व के लिए जगदलपुर बुलाना होता है. सदियों से चली आ रही इस रस्म में दोनों देवियों के मिलन के बाद मुख्य दशहरा पर्व की रस्मों की शुरुआत होती है.

Last Updated : Oct 15, 2021, 10:21 AM IST

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