जगदलपुरः दिवाली त्यौहार के लिए कुछ ही दिन शेष रह गए हैं और इसकी तैयारी बस्तर में भी धूमधाम से की जा रही है. लेकिन बस्तर के आदिवासी (Adivasis of Bastar) अब धीरे-धीरे अपने परंपरागत कार्यों (traditional functions) से दूर होते जा रहे हैं, जिसका फायदा पड़ोसी राज्य उड़ीसा (Orissa) के कुम्हारों को मिल रहा है. प्रोत्साहन के अभाव में अब दीया बनाने वाले आदिवासियों का कारोबार से मोहभंग होता जा रहा है. दूसरी ओर, दूसरे राज्यों के कारोबारी यहां आकर अपना कारोबार कर रहे हैं.
विलुप्त होने की कगार पर दीया बनाने का कारोबार हर साल बस्तर के आदिवासी दिवाली त्योहार के दौरान मिट्टी के दीए के साथ ही अलग-अलग वस्तु बनाते आ रहे थे लेकिन बीते कुछ सालों से देखा जा रहा है कि अब बस्तर के कुम्हार इस काम से तौबा कर लिए हैं. जिससे अब मिट्टी की बने दीए और बर्तन समेत अन्य वस्तु बाजारों में दिखाई नहीं देते. हालांकि इसके पीछे बस्तर के कुम्हार (Potters of Bastar) इस काम में ज्यादा फायदा नहीं मिलने की बात कह रहे हैं. पिछले कुछ सालों से दीवाली पर्व के दौरान बड़ी मात्रा में उड़ीसा में बने मिट्टी के दीये बस्तर में बिकने आ रहे हैं.
बस्तर से लगे उड़ीसा राज्य से इस साल 50 हजार से भी अधिक दिए बस्तर में बिकने पहुंचे हुए हैं. उड़ीसा के लगभग 25 परिवार अपने हाथों से बने मिट्टी के दीए बिक्री करने बस्तर पहुंचे हुए हैं और बस्तर का दीवाली बाजार उड़ीसा के दीयों से ही भरा पड़ा है. एक तरफ जहां पहले दिवाली त्योहार (Diwali festival) के दौरान बस्तर के आदिवासियों के द्वारा बनाए जाने वाली दीयों से बाजार पटा हुआ दिखाई देता था लेकिन अब इन आदिवासियों (Tribesman) के द्वारा बनाए जाने वाले दीए विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गए हैं. साथ ही बस्तर के कुम्हारों ने भी मिट्टी के दीए और अन्य वस्तुएं बनाने का काम छोड़ दिया है.
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कुम्हारों ने छोड़ दिया पारंपरिक कार्य
हालांकि इसके पीछे बस्तर के कुम्हार पिछले सालों की तुलना में अब दीया बनाकर अच्छी कमाई नहीं होने की बात कह रहे हैं. जिस वजह से कई कुम्हारों ने यह कार्य छोड़ दिया है. उन्होंने कहा कि कई आदिवासी ग्रामीण (tribal villager) ऐसे हैं जो उड़ीसा के ही दिए उनसे थोक में लेकर बाजार में बेच रहे हैं. ग्रामीण कुम्हार का कहना है कि कुछ साल पहले बस्तर के ग्रामीण कुम्हार का घर इन मिट्टी के दीए और गर्मी में हंडी बनाकर चलता था लेकिन अब आलम यह है कि सभी ने यह काम छोड़ दिया है और दूसरी काम की तलाश में लग गए हैं. लिहाजा अब कई कुम्हार उड़ीसा से दिए खरीद कर दिवाली के समय बेचने को मजबूर हैं.
स्थानीय जानकारों का कहना है कि जगदलपुर शहर का एक मोहल्ला कुम्हारपारा के नाम से जाना जाता है और यहां कुम्हार लोगों की संख्या ज्यादा थी लेकिन अब अधिकांश कुम्हारों ने मिट्टी से बनाई जाने वाली सभी काम छोड़ दिए हैं. दूसरे काम में जुट गए हैं . उनका कहना है कि अब दीए में पहले तरह की कमाई नहीं होती और उन्हें सामान भी महंगा पड़ता है. लिहाजा कुछ कुम्हार उड़ीसा से बड़ी मात्रा में बिकने पहुंच रही दीए को थोक में लेकर बेचने को मजबूर हो रहे हैं. बस्तर के आदिवासी अपने परंपरागत कार्य को भूलते जा रहे हैं.
बाहर से पहुंच रहे कारोबारी
उड़ीसा से दिए बिक्री करने पहुंचे कुम्हारों का कहना है कि उड़ीसा में बड़ी संख्या में कुम्हार आज भी मिट्टी के सामान और दिवाली के समय दीया बनाते हैं और उड़ीसा में उतने दिए नहीं बिकती जितने बस्तर में लोग खरीदते हैं. उन्होंने बताया कि पिछले कुछ सालों से वे बस्तर में दिए बेचने पहुंच रहे हैं. धीरे-धीरे बड़ी संख्या में उड़ीसा के ही कुम्हार यहां अपने दीए बेच रहे हैं. उन्होंने बताया कि उड़ीसा से 20 से 25 परिवार लगभग 50 हजार से अधिक मिट्टी के दीये और अन्य मिट्टी के सामान बिक्री के लिए बस्तर पहुंचे हुए हैं. साथ ही उनकी यहां अच्छी कमाई भी हो रही है. दिवाली के समय चाइनीस झालरों के चलन के बावजूद भी लोग उनके पास दीये खरीद रहे हैं. बस्तर के आदिवासी कुम्हार अब अपने परंपरागत कार्यों से जिस तरह से दूर हो रहे हैं उससे आने वाले दिनों में आदिवासियों की बनाई गई वस्तुएं बस्तर में विलुप्त होने के कगार पर पहुंच जाएगी.