धमतरी : जिला मुख्यालय से करीब 70 किलोमीटर दूर सिहावा की इस पहाड़ी को महानदी का उद्गम स्थल कहा जाता है. यहां की छोटी-बड़ी पहाड़ियों को सप्तऋषियों का साधना स्थल भी माना जाता है. इन्हीं में से महेन्द्रगिरी पर महर्षि श्रृंगी का आश्रम है. बताते हैं इसी आश्रम के पास एक छोटे से कुंड से महानदी का उद्गम होता है.
नदिया किनारे, किसके सहारे जून की गर्मी में हमारी टीम ने महेन्द्रगिरी पर्वत पर चढ़ाई का फैसला लिया. स्थानीय लोगों ने बताया कि इस मौसम में बहुत कम लोग ही चढ़ाई करते हैं, हालांकि ऊपर मौजूद आश्रम में पुजारी सालभर मिल जाएंगे, जो इस स्थान के बारे में और जानकारी दे सकते हैं.
जैसे-जैसे हम पर्वत पर बनी सीढ़ियों के सहारे चढ़ना शुरू करते हैं, गर्मी का असर शरीर पर पड़ने लगता है. करीब एक घंटे की चढ़ाई के बाद टीम महेन्द्रगिरी के शिखर पर पहुंची. सीढ़ियां खत्म होते ही टीम को बाई ओर एक छोटा सा कुंड नजर आया, जिसके पास लगी पट्टिका से पता चलता है कि यही वो स्थान है जहां से महानदी का उद्गम होता है.
हालांकि, महानदी का उद्गम इस स्थान से होने के बाद भी नदी कहीं नजर नहीं आती. बताते हैं इस कुंड से पानी पहाड़ी के अंदर से ही रास्ता बनाते हुए नीचे उतरता है. इसके उद्गम को लेकर स्थानीय मान्यता कुछ इस तरह हैं.
महानदी के उद्गम के साथ बड़ी धार्मिक आस्था जुड़ी है. इसके बाद टीम उस स्थान पर जाना तय करती है, जहां से महानदी एक नदी का आकार लेती है. महेन्द्रगिरी पर्वत के नीचे स्थित इस स्थान को गणेश घाट कहा जाता है. गणेश घाट पर एक मुहाना है जो पहाड़ी के बिल्कुल तराई पर है. कहा जाता है कि इसी रास्ते से कुंड का पानी नीचे उतरता है, लेकिन फिलहाल ये मुहाना सूखा हुआ नजर आ रहा है. हालांकि गणेश घाट में पानी बहता हुआ नजर आता है. स्थानीय लोगों के मुताबिक ये पास के एक बांध से पानी छोड़े जाने के कारण कुछ दिनों से यहां महानदी की धारा प्रवाहित है नहीं तो महानदी अपने उद्गम से कुछ दूरी पर ही थमती नजर आती है थोड़ा बहुत पानी होने पर भी धारा जैसी कोई चीज नजर नहीं आती. स्थानीय लोगों की मानें तो लगातार हो रहे रेत उत्खनन और तट पर स्थित पेड़ों की कटाई के चलते ये हालात बने हैं.