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बिलासपुर सरकारी जमीन घोटाले के आरोपियों की जमानत याचिका छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में खारिज - बिलासपुर सरकारी जमीन घोटाला

bail plea rejected in Chhattisgarh High Court: करोड़ों रुपयों की सरकारी जमीन रिक्शा चालक के नाम कर उसे बेचने के मामले की जब जांच शुरू हुई तो परत दर परत कई खुलासे हुए. मामले में आरोपी भूमाफियाओं ने जमानत के लिए छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में याचिका दायर की जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया है.

bail plea rejected in Chhattisgarh High Court
बिलासपुर सरकारी जमीन घोटाला

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Published : Sep 20, 2022, 1:08 PM IST

बिलासपुर: मोपका और चिलहटी के जमीन घोटाले से संबंधित बेल याचिका की हाई कोर्ट में सुनवाई हुई. मामले में सुनवाई करते हुए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने जमानत याचिका खारिज कर दी. भोंदूदस, हैरी जोसफ और अशोक कुमार जयसवाल (पटवारी) की जमानत कोर्ट ने सरकारी और प्राइवेट जमीन को फर्जी विक्रय पत्र के सहारे से अपने नाम कर बेच दिया था. मुख्यमंत्री से शिकायत के बाद उच्च स्तररीय जाच के आदेश दिये गए थे. आदेश के बाद जिला और पुलिस प्रशासन ने जांच शुरू की. Government land scam accused bail plea

कोर्ट ने कहां बहुत बड़ा स्कैम: सरकारी और निजी जमीन घोटाले के मामले में पकड़े गए पटवारी और अन्य के मामले में सोमवार को जमानत याचिका पर हाई कोर्ट में सुनवाई हुई. इससे पहले इसी मामले में सुरेश मिश्रा और एक अन्य को जमानत मिल गई है. इस मामले में कोर्ट में सुनवाई में बताया गया कि ये बहुत बड़ा स्कैम है और कई आरोपी है. जिनकी विवेचना चालू है. आरोपियों ने विक्रय पत्र को रजिस्ट्री ऑफिस से निकालकर उसमें छेड़छाड़ कर नाम और खसरा नंबर बदल दिया है. जो स्टेट एग्जामीनर रायपुर की रिपोर्ट में आया है. मामले को देखते हुए जॅस्टिस रजनी दुबे ने इनकी बेल निरस्त कर दी. हैरी जोसफ को एक अन्य मामले में बेल मिलने से जमानत का लाभ मिल गया लेकिन मुख्य प्रकरण में जमानत निरस्त होने से वह जेल में ही रहेगा. bail plea rejected in Chhattisgarh High Court

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क्या है पूरा मामला:जिला प्रशासन और पुलिस को शिकायत के माध्यम से बताया कि बिलासपुर के रिक्शा चालक भोंदूदास के नाम चिल्हाटी, मोपका और लगरा की करोड़ों रुपये की सरकारी और कुछ निजी जमीनों को सरकारी दस्तावेजों में छेड़छाड़ कर उसके नाम कर दिया गया. जमीन घोटाले में करोड़पति रिक्शा चालक भोंदूदास ने साल 1976 में जिससे जमीन खरीदने का दावा किया है, उसकी मौत 1974 में ही हो चुकी थी, लेकिन साल 2015 में इन जमीनों के नामांतरण और रिकॉर्ड के लिए फाइल राजस्व कार्यालय पहुंची तो बिना जांच किये उस समय तहसीलदार रहे संदीप ठाकुर ने साइन भी कर दिया. जमीन का नामांतरण होने के बाद इसका पावर ऑफ एटॉर्नी किसी ने अपने नाम कर लिया. इसके बाद उस भूमाफिया ने जमीनों को बेचने का काम शुरू कर दिया. इस मामले में मिली शिकायत के बाद जिला प्रशासन के निर्देश के बाद पुलिस ने एफआईआर कर जांच कमेटी गठित कर जांच शुरू की.

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