बिलासपुरःछत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बिलासपुर (Bilaspur) कालीबाड़ी दुर्गा समिति (Kalibadi durga samiti) की बंगाली महिलाओं (Bangali women)ने आज रीति-रिवाज के साथ पारंपरिक तरीके से सिंदूर खेला (Sindoor khela) किया. दुर्गा विसर्जन (Durga Visarjan) से पहले बंगाली रिवाज के अनुसार सिंदूर खेला किया जाता है. इस मौके पर मां को सिंदूर लगाकर कालीबाड़ी की महिलाओं (Women of Kalibari) ने मां को विदाई दी.
मां को सिंदूर लगाकर किया विदा सिंदूर खेला के बाद विदा होती है मां
बता दें कि सिंदूर खेला की परंपरा बंगाल की एक खास प्रथा है. विजयादशमी (Vijyadashmi) के दिन बंगाली महिलाएं मां दुर्गा को विदाई से पहले सिंदूर खेला करती हैं. जिस तरह से बेटी की विदाई भावुक कर देने वाली होती है. वैसे ही नवरात्र (Navratra) के दशमी तिथि को बंगाली महिलाएं मां को बेटी के रूप में सिंदूर लगाकर और मिठाई खिलाकर विदा करती हैं. मां को सिंदूर लगाने के बाद महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाकर अमर सुहाग की कामना करती हैं.
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बंगाल में धूमधाम से मनाई जाती है दुर्गापूजा
वहीं, पूरे देश में सबसे ज्यादा दुर्गा पूजा (Durga puja) और नवरात्रि पर्व को पश्चिम बंगाल में धूमधाम से मनाया जाता है. यहां देवी आराधना की परंपरा सदियों से चली आ रही है. दुर्गा उत्सव में बंगाली समाज विशेष ढंग से मां की पूजा-अर्चना करता है. वहीं, बिलासपुर के बंगाली समाज गोनपरा स्थित कालीबाड़ी में दुर्गा स्थापना कर उनकी पूजा के बाद विसर्जन से पहले बंगाली परंपरा के अनुसार सिंदूर खेला का आयोजन किया गया.
बंगाल की परम्परा है सिंदूर खेला
इस मौके पर जहां देवी की स्थापना की जाती है, वहां से हटाकर दूसरी जगह उन्हें रखा जाता. इसके बाद बंगाली महिलाएं मां के साथ सिंदूर खेला की परंपरा निभाती है. इस परंपरा के अनुसार जैसे एक बेटी को विवाह के बाद ससुराल विदा करते समय जो परंपरा निभाई जाती है. ठीक वैसे ही मां दुर्गा के विसर्जन को मां का ससुराल जाना माना जाता है और विदाई दी जाती है. इसके अलावा मां की सिंदूर से मांग भरी जाती है और मीठा खिला कर मां को विदा किया जाता है. इस मौके पर बंगाली महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाकर मीठा खिलाती है और अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती है. इसके साथ ही आने वाले वर्षों में विपदाएं, विपत्ति और तकलीफों को दूर करने को मां दुर्गा से विनती करती हैं.
सिंदूर खेला के बाद मछली भोग है जरूरी
बता दें कि पश्चिम बंगाल में मछली को पवित्र माना जाता है. यहां मछली की पूजा भी की जाती है. दुर्गा विसर्जन के बाद यहां मछली भोग की भी परंपरा है. ऐसा माना जाता है कि मछली परिवार का पेट पालती है. वह व्यापार का मुख्य स्रोत है और घरों में मछली भोग से शांति बनी रहती है. यही कारण है कि, मछली भोग किया जाता है. इसके साथ ही मछली भोग करने के कई कारण है. पश्चिम बंगाल और साउथ के कई इलाकों में मछली का व्यापार किया जाता है. मछली पकड़कर बेचकर पैसे कमाए जाते है. जैसे उत्तर भारत या कई राज्यों में चावल की पूजा की जाती है. ठीक वैसे ही बंगाल में मछली की पूजा की जाती है, क्योंकि यहां के लोगों का मानना है कि मछली ही इनका पेट पालती है. वहीं, दुर्गा पूजा के बाद सिंदूर खेला की परंपरा पूरी करने के बाद बंगाली समाज की महिलाएं मछली का भोग लगाती हैं.