सरगुजा : उत्तर छत्तीसगढ़ में प्रस्तावित लेमरू एलिफेंट रिजर्व और कोल ब्लॉक आवंटन को लेकर प्रदेश की सियासत गरमाई हुई है. मामले में जहां सरगुजा के कुछ गांव के ग्रामीण इस एलिफेंट रिजर्व का विरोध कर रहे हैं, तो कुछ खदान खोलने का विरोध कर रहे हैं. इस बीच सरकार की रिजर्व का प्रस्तावित क्षेत्रफल कम करने की कवायद को कोल ब्लॉक आवंटन से जोड़ा गया. जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी ने मुख्यमंत्री पर अडानी से डील का आरोप लगाया. इस पूरे मामले में प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने ETV भारत से बातचीत की और मामले के सारे पहलुओं को बारीकी से समझाने की कोशिश की है.
टीएस सिंहदेव से खास बातचीत सवाल : लेमरू रिजर्व बनने को लेकर दो तरह की बातें सामने आ रही हैं, एक तरफ रहवासी क्षेत्र की मांग को लेकर रिजर्व का क्षेत्रफल घटाया जा रहा है, दूसरी तरफ आरोप लग रहे हैं कि अडानी को जमीन देने के कारण रिजर्व का एरिया घटाया जा रहा है ?
जवाब : मुझे नहीं लगता कि मुख्यमंत्री इस तरह की कोई पहल करेंगे या उन्होंने की है. जहां तक मैं नियमों को जनता हूं एलिफेंट रिजर्व एक अलग स्तर की व्यवस्था है. सेंचुरी और नेशनल पार्क भी अलग स्तर की व्यवस्था है. तीनों स्तरों के प्रबंधन में अलग-अलग प्रावधान कानून में रहते हैं कि आप क्या यहां कर सकते हैं क्या नहीं ? एलिफेंट रिजर्व घोषित कर देने से यहां केंद्र की सरकार खदानें खोलने की अनुमति जो देती जा रही है उस पर रोक लग जाएगी. मुझे नहीं लगता, अगर जंगल है वहां हाथियों के रहवास के लिए उनके खानपान के लिए एक चिन्हांकित क्षेत्र को निश्चित करना ये उचित कदम है और पिछली सरकार में रमन सिंह के समय विधानसभा में एक अशासकीय प्रस्ताव रखा गया कि, हम सरगुजा, कोरबा और जशपुर के क्षेत्र में 450 वर्ग किलोमीटर में एलिफेंट सेंचुरी बनाना चाहते हैं.
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केंद्र को प्रस्ताव गया और उस समय मनमोहन सिंह की सरकार ने इसकी अनुमति भी दे दी, लेकिन रमन सिंह की सरकार ने इस पर कुछ नहीं किया. जन घोषणा पत्र में हम लोगों ने भी 450 वर्ग किलोमीटर का पार्क बनाने की बात कही थी. सरकार बनने के बाद वन विभाग की ओर से एक प्रस्ताव आया कि ये जो 450 वर्ग किलोमीटर का एरिया है इसे सेंचुरी नहीं बल्कि एलिफेंट रिजर्व के रूप में 1995 वर्ग किलोमीटर का किया जा सकता है, ताकि रिजर्व में आने वाले गांव को भी निस्तारी की दिक्कत न हो.
इस संबंध में मैंने भी विधानसभा में एक बात रखी थी कि, मेरी विधानसभा क्षेत्र के कई ऐसे गांव हैं जो आखिरी छोर में आते हैं. उन्हें रिजर्व में शामिल नहीं किया जाए. बाकी जो गांव रिजर्व के बिल्कुल बीच में आ रहे हैं, तो उनको रिजर्व में शामिल करना पड़ेगा. लेकिन साइड के गांव को लेने का कोई औचित्य नहीं बनता है. वहां जो अधिकारी थे उन्होंने आश्वस्त भी किया था कि ऐसे गांव इस एलिफेंट क्षेत्र में नहीं लिए जाएंगे.
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बाद में इसमें ये बात सामने आई कि, इसे और बड़ा करने पर विचार चल रहा है. इसमें मेरे विधानसभा क्षेत्र के बहुत से ग्रामीणों ने आकर विरोध जताया था. लोगों ने इस मुद्दे पर राजनीतिक मूवमेंट भी चलाया कf आपकी जमीन कांग्रेस की सरकार ले रही है. आपकी जमीन सेंचुरी में चली जायेगी, जो भ्रम था. इस पर मैंने कलेक्टर साहब को पत्र भी लिखा और विभाग के मंत्री से भी बात की थी. मैंने कहा था कि, निष्पक्ष ग्राम सभा करा लीजिए कोई दबाव ग्रामीणों पर नहीं होना चाहिये. ग्राम सभा में जो पारित होगा वही होना चाहिये. इसमें अडानी की खदान के आसपास के करीब 4 गांव थे. जो रिजर्व में जाना चाहते थे. बाकी के गांव नहीं जाना चाहते थे. मैंने यही कहा है कि ये मैं तय नहीं कर सकता. ये ग्राम सभा तय करें और पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि, ग्राम सभा के फैसले का सम्मान हो.
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इस बीच केंद्र सरकार ने कई माइंस को निजी क्षेत्र में देने का निर्णय ले लिया और उसमें ऐसे क्षेत्र भी चिन्हांकित किये गये जिसमें मदनपुर और आस-पास का एरिया आता है. हो सकता है उसमें सरगुजा का भी कुछ हिस्सा हो मुझे ठोस जानकारी नहीं है. ये एक अलग मुद्दा है. रिजर्व बनाना एक अलग मुद्दा है. एक साथ इसे देख पाना उचित नहीं है. मेरी राय अगर कोयला खदान के संबंध में आप कहेंगे तो यूपीए की गवर्मेंट ने जो नीति बनाई थी कि 'नो गो एरिया' कि, इतनी हमने कोयला खदानों को अनुमति दे दी है. ये लक्ष्मण रेखा तय कर दी गई है. अब इसके आगे इसे कोई पार नहीं कर सकेगा. हाथी रिजर्व खोलने से कोयला खदान खुलने का कोई ताल्लुक नहीं है.