सरगुजा : गांव के घरों में आपने ढिबरी तो जरूर देखी होगी. रोशनी के लिए घरों में पहले चिमनी और मोमबत्ती की तरह ही ढिबरी लगाई जाती थी. ये एक तरह से चिमनी की तरह काम करती है. आधुनिकता के इस दौर ने परंपराओं के साथ अब ऐसी दैनिक उपयोग की वस्तुओं को भी विलुप्त होने के कगार पर खड़ा कर दिया है. आधुनिक संसाधनों के आने से अब लोगों ने ऐसे पुरानी चीजों से किनारा करना शुरू कर दिया है. बदलते वक्त के साथ गांव में बिजली पहुंची और घरों से ढिबरी खत्म होने लगी. अब तो ये सिर्फ हाट-बाजारों में ही यह देखने को मिलते हैं.
ढिबरी विलुप्त होने के कगार पर ढिबरी सरगुजा के गांव-गांव की मूल जरूरत हुआ करती थी. एक समय अमूमन सरगुज़ा के हर घर मे यह देखी जा सकती थी, लेकिन बदलते वक्त के साथ गांव-गांव तक बिजली पहुंची और ढिबरी पर निर्भरता खत्म होने लगी, लेकिन जिसने भी ग्रामीण जीवन को करीब से देखा है उसे ये ढिबरी जरूर याद होगी.
ढिबरी की रोशनी में होती थी पढ़ाई
सरगुजा में कई बड़े अधिकारी, नेता, मंत्रियों ने इस ढिबरी की रोशनी में पढ़ाई की है. ढिबरी का चलन अब समाप्ति की ओर है. गांव में अब भी कुछ घरों में ढिबरी रखा गया है जो इमरजेंसी में काम आता है. पावर कट की समस्या से बचने के लिए लोग ढिबरी रखते हैं. ETV भारत ने सरगुजा के हाट बाजारों में घूमकर इस ढिबरी को ढूंढ निकाला. दुकानदार ने बताया कि, अब दिन भर में सिर्फ एक से दो ढिबरी ही बिकती है. लोग ढिबरी की जगह अब LED लाइट लेना पसंद करते हैं.
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ढिबरी से सस्ती LED लाइट
ढिबरी का इस्तेमाल महंगा भी है और इसमें रखरखाव भी ज्यादा है. एक ढिबरी अब 120 रुपये की बिक रही है, इसमें 10 रुपये की कॉटन की बत्ती और 5 रुपये का केरोसीन डालना पड़ता है तब जाकर कहीं घर में रोशनी होती है. केरोसिन की वजह से धुंआ भी निकलता है. लोग इसके बजाय LED लाइट लेना पसंद करते हैं. LED लाइट सस्ती और सुविधाजनक है. 130 से 140 रुपये में बाजार में LED लाइट उपलब्ध हैं. जिसे बार-बार चार्ज करके चलाया जा सकता है.
आराम और आधुनिकता के दौर में भला कौन ढिबरी जलाएगा, लेकिन अगर आप अपनी बचपन की यादें ताजा करना चाहते हैं और दोबारा से ढिबरी देखना चाहते है तो सरगुजा के हाट बाजारों में जाएं. आज भी इन बाजारों में कुछ दुकानदार ढिबरी बेचते आपको जरूर नजर आएंगे.