छत्तीसगढ़

chhattisgarh

ETV Bharat / briefs

SPECIAL: कोरोना संकट के बीच फिजिकल डिस्टेंसिंग, लेकिन सामाजिक जुड़ाव बढ़ा - लॉकडाउन का असर

ETV भारत ने करीब ढाई महीने के लंबे लॉकडाउन और इस दौरान किए गए सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर सामाजिक जानकारों और आम लोगों से बातचीत की है. यह जानने की कोशिश की गई की इस दौरान लोगों की लाइफस्टाइल और सामाजिक वातावरण में क्या बदलाव आया है.

Lifestyle changes during lockdown
लाइफस्टाइल में बदलाव

By

Published : Jun 19, 2020, 3:20 PM IST

Updated : Jun 19, 2020, 8:00 PM IST

बिलासपुर:महान दार्शनिक अरस्तू ने कहा था कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है. आज हर व्यक्ति को समाज के साथ और प्यार की जरूरत है. कोई भी इंसान बिना समाज के आगे नहीं बढ़ सकता क्योंकि समाज ही हमें माहौल देता है, जिसमें हम ज्यादा बेहतर तरीके से अपनी जिंदगी जीने के बारे में सोच सकें. अरस्तू के ये शब्द हमारे वर्तमान मनोभावों को दर्शाते हैं और फिजिकल डिस्टेंसिंग के बीच सामाजिक जुड़ाव के भाव को और ज्यादा प्रबल करते हैं. ETV भारत ने करीब ढाई महीने के लंबे लॉकडाउन और इस दौरान किए गए सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर लोगों से बातचीत की है.

लोगों के बीच बढ़ी सामाजिकता

बिलासपुर सेंट्रल यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर अनुपमा सक्सेना का मानना है कि कोरोना काल के शुरुआती सफर में जब अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय, प्रादेशिक और स्थानीय स्तर पर सीमाओं को बांधने का काम किया गया, तो वो समय भय का था, लेकिन वह एक अस्थाई फेज था. बाद में लोग धीरे-धीरे सामाजिक तौर पर दोबारा अनुकूलित होने लगे. इस बीच सोशल डिस्टेंसिंग और लॉकडाउन जैसे शब्दावली के अस्थाई दुष्प्रभाव भी दिखे और लोगों में भय जैसा माहौल बना.

'समाज के अलग-अलग लोगों ने निभाई भूमिका'

प्रोफेसर अनुपमा का कहना है कि सामाजिक संबंध और मानवीयता जैसे गुण इंसान में होते हैं और व्यक्ति अपने इस मूल स्वभाव के उलट लंबे समय तक नहीं जी सकता. यही वजह है कि कोरोना संकट के दौरान भी बड़े पैमाने पर अलग-अलग सामाजिक संगठनों, डॉक्टरों,आम लोगों और पत्रकारों ने बढ़ चढ़कर अपनी सामाजिक भूमिका निभाई.

पढ़ें-SPECIAL: लॉकडाउन में राजनांदगांव नगर निगम ने 2 करोड़ का राजस्व किया वसूल

अनुपमा सक्सेना बतातीं हैं कि सामाजिक तौर पर जो व्यापक बदलाव आता है उसके पीछे मूल वजह आर्थिक है. इसमें उत्पादन की शक्तियां महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. जब कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को छोड़कर लोगों का रुझान उद्योग आधारित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ा तो संयुक्त परिवार में अलगाव भी हुआ और इस वजह से सामाजिक संरचना में भी बहुत हद तक बदलाव आया. आज वर्क फ्रॉम होम कल्चर के बढ़ने से एक बार फिर ज्वॉइंट फैमली स्ट्रक्चर की तरफ लोग बढ़ रहे हैं.

'कोरोना संकट में मानवीय मूल्य उभरकर सामने आए'

सामाजिक जानकार नंद कश्यप का मानना है कि कोरोना संकट के शुरुआती दौर में जरूर डर के कारण हम एक-दूसरे से कटते नजर आए लेकिन यह कटाव अस्थाई था. सामाजिकता मानव के मूल चरित्र का एक हिस्सा है. यह कथन तब सबसे ज्यादा प्रबल हुआ जब बड़े पैमाने पर मजदूर मजबूरी में सड़क पर आए और तमाम सामाजिक संगठनों और लोगों के मानवीय मूल्य उभरकर सामने आए.

पढ़ें- SPECIAL: Lockdown में होटल इंडस्ट्री को नहीं मिली राहत, मंदी के दौर से गुजर रहा उद्योग

नंद कश्यप ने कहा कि यह मानवीय पक्ष एक सोशल इंडिकेटर की तरह है. चाहे संकट कितना भी बड़ा क्यों ना हो व्यक्ति समाज के अपने मूल स्वभाव से स्थाई तौर पर दूर नहीं हो सकता. यह समय कम कमाई में बचत के साथ चलने का एक मंत्र भी सिखाता है जो हमें बड़े परिवार की अवधारणा की तरफ प्रेरित करता है. लॉकडाउन के खत्म होते ही मानवीय संबंध और ज्यादा प्रगाढ़ हो सकते हैं, जिसकी संभावना ज्यादा है.

'बढ़ी है सामाजिक दूरी'

सामाजिक जानकार अनिल तिवारी बताते हैं कि अब तक के कोरोना काल में रिश्तों में भी बदलाव देखने को मिला है. रोजमर्रा के जीवन से जुड़ी हुई चीजें मसलन स्कूल, चिकित्सा, व्यापार, उद्योग में सामाजिक दूरी बढ़ी है.

कोरोना के इस भीषण संकट के बीच तमाम पहलुओं पर दुनियाभर में शोध कार्य किए जा रहे हैं, लेकिन एक बात तो तय है कि कोई भी अस्थाई संकट मानव के सामाजिक पक्ष को कमजोर नहीं कर सकता.

Last Updated : Jun 19, 2020, 8:00 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details