बेतिया:"सरकारें आएंगी, जाएंगी, पार्टियां बनेंगी, बिगड़ेंगी मगर ये देश रहना चाहिए. इस देश का लोकतंत्र रहना चाहिए.' भारत रत्न और पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के ये लफ्ज शायद ही देश का कोई राजनेता चरितार्थ करता हो. बिहार में तो ये कतई चरितार्थ होते नहीं दिखाई देता. जहां चुनावी दंगल के बीच नेताओं ने वादे तो खूब किए लेकिन बदलाव की जमीनी हकीकत ज्यों की त्यों रही. कुछ ऐसी ही तस्वीरें बेतिया से आईं हैं, जहां पानी के लिए आज भी लोग जद्दोजहद कर रहे हैं.
पानी की किल्लत
एक समय ऐसा होता है कि बेतिया में बाढ़ के प्रकोप से चारों ओर पानी ही पानी दिखाई देता है. पहले उस त्रासदी से लोगों को मुसीबत उठानी पड़ती है. उसके बाद पीने के पानी को लेकर जो मजबूरी बनती है. उन्हें देखने के लिए वादों की नहीं, इरादों की जरूरत महसूस होती है. मामला जिले के गौनाहा प्रखंड क्षेत्र के भिखनाठोरी गांव से सामने आया है. जहां एक बुजुर्ग को पानी के लिए जद्दोजहद करते देखा गया.
नदी-नालों पर निर्भर ग्रामीण
गौनाहा प्रखंड क्षेत्र के भिखनाठोरी गांव के लोगों कि समस्या खत्म होने का नाम नही ले रही है. एक तरफ गांव में पहुंचने के सारे सुगम यातायात के साधन बंद हो गया है. तो दूसरी तरफ आज भी लोग पानी के लिए तरस रहे हैं. अजादी के सात दशक पूरे होने के बाद भी से नदी नालों पर निर्भर हैं. ठोरी के लोग डिजिटल जमाने भी में पाषाण युग में जीने को मजबूर है. ग्रामीण रेलवे स्टेशन के पास के बोरिंग से गांव के लोग प्यास बुझाते हैं. जबकि गांव में अन्य तीन जगहों पर भी बोरिंग किया गया है. एक स्टार्टर के अभाव में कार्य नहीं कर रहा तो दुसरा व तीसरा बहुत कम पानी आता है. सिर्फ एक बोरिंग होने के कारण काफी लंबी लाइन लगी होती है.