पश्चिम चंपारण(बगहा): 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है. 1982 से शुरू हुई यह परंपरा आदिवासियों के लिए एक त्यौहार से कम नहीं है, लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामले को देखते हुए आदिवासी कोई बड़ा आयोजन नहीं कर रहे हैं. मौके पर प्रकृति पूजन और लोकनृत्य के माध्यम से आदिवासी अपनी खुशी का इजहार कर रहे हैं.
लोकनृत्य कर अपने परम्परा का वहन
बगहा इलाके के लाखों आदिवासी धूमधाम से आदिवासी दिवस मना रहे हैं. इसे वे लोग एक पर्व की तरह सालों से मनाते आ रहे हैं. हालांकि इस बार इसपर भी कोरोना का असर देखने को मिल रहा है. चंपारण आदिवासी उरांव महासभा प्रकृति की पूजा और लोकनृत्य कर अपने परम्परा का वहन कर रही है.
विश्व आदिवासी दिवस
कोरोना की वजह से लोग घरों पर ही पूजा कर इस त्यौहार को सेलिब्रेट कर रहे हैं. विश्व आदिवासी दिवस आदिवासियों के मानवाधिकारों को लागू करने के लिए मनाया जाता है. 9 अगस्त 1982 को संयुक्त राष्ट्र संघ ने एक कार्यदल का गठन कर आदिवासियों के मानवाधिकार को लागू करने के लिए विश्व आदिवासी दिवस मनाने का फैसला लिया था. तभी से बगहा के आदिवासी बहुल इलाके में भी धूमधाम से इसे मनाया जाता है.
प्रकृति पूजन को देते हैं महत्व
बता दें कि इलाके में उरांव आदिवासियों की आबादी तकरीबन डेढ़ लाख है जो इंडो-नेपाल सीमा के वाल्मीकिनगर से चम्पारण जिले के मैनाटांड़ तक बसे हुए हैं. ये लोग प्रकृति पूजन को सबसे ज्यादा महत्व देते हैं. वे प्रकृति में पाए जाने वाले सभी जीव, जंतु, पर्वत, नदियां, नाले , खेत सहित वृक्षों की पूजा करते हैं. उनका मानना है कि प्रकृति के हर एक वस्तु में जीवन होता है. साथ ही दहेज लेने को ये पूर्णतः पाप समझते हैं.
आरक्षण से वंचित
उरांव बहुल पंचायत ढोलबजवा-लक्ष्मीपुर के मुखिया नरेश उरांव ने बताया कि कि आज भी सरकार आदिवासियों को उपेक्षा की नजर से देखती है. सिर्फ शिक्षा में आरक्षण के सिवा इन्हें कुछ भी हासिल नहीं हुआ है. उन्होंने बताया कि नौकरी या राजनीतिक भागीदारी में आरक्षण से आज भी ये वंचित हैं.
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