बगहा:बिहार, यूपी और नेपाल सीमा तक 890 वर्ग किमी में फैले वाल्मीकी टाइगर रिजर्व में प्रत्येक साल सैकड़ों बार आग लगती है.वीटीआर में आगसे जंगल धू-धू कर जल जाता है. इससे पेड़ पौधों को नुकसान तो पहुंचता ही है, वन्य जीवों के बीच भी अफरा तफरी का माहौल कायम हो जाता है. बता दें की असामाजिक तत्वों द्वारा लगाए जाने वाला आग बेंतों को टारगेट कर लगाया जाता है. स्थानीय समाजसेवियों की मानें तो यह आग जानबूझकर लगाई जाती है ताकि बेंत जलने पर उसकी तस्करी की जा सके.
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आग से बर्बाद हो रहा जंगल : स्थानीय लोगों के मुताबिक आग लगने से जीव जंतुओं समेत वन संपदा को नुकसान पहुंचता है और पर्यावरण भी बुरी तरीके से प्रभावित होता है. बता दें की बाघ आबादी से दूर ही रहना पसंद करते हैं. ऐसे में वह इन घने जंगलों व शांत वातावरण में अधिक रहते हैं. बेंत का जंगल बाघों के रहने के लिए काफी उपयुक्त माना जाता है. क्योंकि बेंतों का घना झुरमुट बाघ और तेंदुओं को शीतलता प्रदान करने के साथ साथ उनके अधिवास के लिए काफी सेफ होता है. यही वजह है की बाघ या तेंदुआ अपने शावकों को जन्म देते हैं तो वे घने बेतों को अपने आशियाना के तौर पर चुनते हैं.
आग से बाघों के अशियाने पर खतरा : अब असमाजिक तत्वों के जंगल में बार बार आग लगाए जाने से बाघों के आशियाने पर ही संकट के बादल मंडराने लगे हैं. वन विभाग के अधिकारी भी यह मानते हैं कि बाघ या तेंदुओं के लिए बेंत का घना जंगल काफी सुरक्षित और माकूल अधिवास क्षेत्र होता है. आग लगने से बड़े पैमाने पर बेतों को नुकसान हो रहा है जो की चिंता का विषय है. इसके अलावा कई बार लापरवाही के कारण भी जंगल में आग लग जाती है. खासकर जब चरवाहे इस ओर मवेशी लेकर आते हैं और जलती बीड़ी फेंक देते हैं, उस दौरान भी जंगल में आग लग जाती है.
"यहां बार-बार आग लगती है. यह बाघ का आशियाना है और सभी जानते हैं कि इस जंगल में बेंत काफी है और यह बाघ के लिए सुरक्षित क्षेत्र है. बाघ के इस सुरक्षित क्षेत्र में बेंत की तस्करी के लिए आग लगा दी जाती है. इससे बाघ के आशियाने पर खतरा मंडराने लगा है और पर्यावरण भी खतरे में हैं"- वीरेंद्र प्रसाद, स्थानीय समाजसेवी
बेंत की तस्करी के लिए लगाई जा रही आग : वाल्मीकीनगर रेंज के रेंजर अवधेश कुमार सिंह ने बताया कि बेतिया की पहचान बेतों से ही है और बेंत का शक्ल स्वरूप कुछ कुछ गुफा की तरह होता है जो की बाघ और तेंदुआ के लिए सेफ्टी आवास होता है, लेकिन कुछ असमाजिक तत्वों द्वारा आग लगाई जाती है. इसकी मॉनिटरिंग की जाती है. रेंजर ने बताया की रोड साइड के बफर एरिया में अधिकांशतः आग लगती है, लेकिन कोर एरिया काफी सुरक्षित है. फिर भी जंगल में आग लगना चिंता का विषय है.
"बेतिया की पहचान बेतों से ही है और बेंत का शक्ल स्वरूप कुछ कुछ गुफा की तरह होता है जो की बाघ और तेंदुआ के लिए सेफ्टी आवास होता है, लेकिन कुछ असमाजिक तत्वों द्वारा आग लगाई जाती है. इसकी मॉनिटरिंग की जाती है. रोड साइड के बफर एरिया में अधिकांशतः आग लगती है, लेकिन कोर एरिया काफी सुरक्षित है"- अवधेश कुमार सिंह, रेंजर, वाल्मीकीनगर रेंज