पश्चिम चंपारण: हिंदू धर्म में सिन्होरा को सुहाग का प्रतीक माना जाता है, ऐसी मान्यता है कि सिन्दूरदान के बाद लड़कियां इसे अपने साथ ससुराल लेकर जाती हैं. बेतिया के चनपटिया प्रखंड क्षेत्र के तुनिया विशुनपुर गांव में हर घर में सिन्होरा बनाने का काम किया जाता है. जिसमें ज्यादातर मुस्लिम समुदाय के लोग शामिल हैं.
अन्य राज्यों में भी होता है निर्यात
लगभग 2 हजार की आबादी वाले इस गांव के लोग सिन्होरा बनाने का काम करके अपनी जीविका चलाते हैं. गांव का कोई भी नौजवान या बुजुर्ग काम के लिए पलायन नहीं करता है. यहां का बना सिन्होरा बिहार के साथ अन्य दूसरे राज्यों में भी जाता है.
कई पुश्तों से चली आ रही परंपरा
भले ही सरकार ने राज्य में किसी उद्योग को स्थापित नहीं किया हो, लेकिन बेतिया का ये गांव अपने आप में लघु उद्योग का एक बड़ा केंद्र बना हुआ है. सालों से चली आ रही परंपरा को आज भी गांव के नौजवान और बड़े बुजुर्ग भली-भांति निभा रहे हैं.
200 घरों में होता है सिन्होरा बनाने का काम
सिन्होरा कारीगर ने बताया कि इस कारोबार से वे अपना गुजारा करने भर कमा लेते हैं. खासकर यूपी और बिहार में सिन्होरा का अधिक प्रचलन है. इससे कई जिले के व्यापारी यहां से सिन्होरा खरीद कर ले जाते हैं और बाजार में बेचते हैं. उन्होंने बताया कि गांव के 200 घर के लोग सिन्होरा बनाने का काम करते हैं.
पुश्तों से हो रहा सिन्होरा बनाने का काम नहीं मिलता सरकारी योजनाओं का लाभ
केंद्र और राज्य सरकार लघु उद्योग को बढ़ावा देने के लिए कई तरह की योजनाएं चला रही हैं. लेकिन, सरकार की सभी योजनाएं यहां पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देती है. ऐसे में इन कारीगरों के कारोबार को सरकारी मदद की जरूरत है, जिससे इसे और बढ़ावा मिल पाए.