बगहा: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात का आज 100वां एपिसोड (Mann Ki Baat 100th Episode) पूरा हो रहा है. जिसे लेकर भाजपा कार्यकर्ताओं में खासा उत्साह है. लाखों लोगों को मन की बात सुनाने के लिए बूथ स्तर पर ग्रामीणों को आमंत्रित किया गया है और टीवी लगाकर स्कूल या अन्य मैदानों में लोगों के बैठने की व्यवस्था की गई है. ऐसे में पश्चिमी चंपारण के लिए यह 100वां एपिसोड इसलिए खास हो जाता है क्योंकि पीएम ने 30 अगस्त 2020 को आदिवासियों के वरना पूजा का जिक्र अपने मन की बात में किया था. बता दें की जब पूरा विश्व कोविड महामारी से जूझ रहा था और लॉकडाउन लगाया गया था, तब पीएम ने आदिवासियों के वरना पूजा का जिक्र किया था.
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उरांव जनजाति के लोग मनाते हैं वरना पर्व: दरअसल आदिवासी समुदाय के उरांव जनजाति के लोग वरना पूजा के दिन प्रकृति की पूजा करते हैं और खुद को 60 घंटे के लिए लॉकडाउन में रखते हैं. इस प्रकृति पूजा को अब थारू समाज भी पूरे शिद्दत के साथ मनाता है. लिहाजा PM मोदी ने 'मन की बात' में बिहार के इस वरना पर्व का जिक्र करते हुए कहा था की देश-दुनिया के लिए लॉकडाउन का अनुभव भले ही नया हो लेकिन, पश्चिमी चंपारण के आदिवासी थारू समुदाय के लिए ये काफी पुराना है. प्रकृति की पूजा करने वाला यह समाज सदियों से लॉकडाउन की परंपरा का निर्वहन करते आ रहा हैं. गहनता से विचार करने पर हमें पर्व और पर्यावरण के रिश्ते की जानकारी मिलती है. दोनों के बीच एक गहरा रिश्ता है. पर्वों में पर्यावरण और प्रकृति के साथ सहजीवन का संदेश छिपा होता है और कई पर्व प्रकृति की रक्षा के लिए मनाए जाते हैं.
बिहार में आदिवासियों की वरना पूजा जाने इस पर्व के पीछे की वजह: पीएम मोदी ने उदाहरण देते हुए कहा था कि यहां का आदिवासी और थारू समुदाय के लोग सदियों से 60 घंटे के लॉक डाउन का पालन करते आ रहे हैं. प्रकृति की रक्षा के लिए यह समुदाय वरना पर्व मनाता है. इस दौरान ना तो गांव में कोई बाहरी लोग आते हैं और ना ही इस पर्व के दौरान आदिवासी अपने घरों से बाहर निकलते हैं. इसके पीछे की वजह यह है कि वरना पूजा के दौरान आदिवासी प्रकृति की रक्षा का संकल्प लेते हैं और वो इस दिन पेड़ पौधों को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. ऐसे में कोई बाहरी व्यक्ति आ जाए या ये खुद बाहर निकल जाएं तो पेड़ पौधों को नुकसान पहुंच सकता है.
60 घंटे के लिए लॉकडाउन: बता दें कि पश्चिमी चंपारण जिला में 214 राजस्व गांव हैं जहां तकरीबन 2 लाख 50 हजार से ज्यादा थारू व उरांव जनजाति के लोग निवास करते हैं. सभी पूजा या शादी ब्याह में पेड़ पौधों को साक्षी मानकर प्रकृति पूजा करते हैं. खासकर वरना पूजा के आयोजन के लिए प्रत्येक तापा में बैठक कर पूजा की तिथि का निर्धारण होता है. लोग उस निर्धारित तिथि पर वरना पूजा के दिन खुद को 60 घंटे के लिए लॉकडाउन में रखते हैं.
पश्चिमी चंपारण में आदिवासी समूह दो बार होता है इस पर्व का आयोजन: हसनापुर पंचायत के पूर्व मुखिया नरेश उरांव ने बताया कि वरना पूजा का आयोजन दो बार होता है. एक जब फसलें कट जाती हैं और खेत पूरा खाली हो जाता है. उस दौरान लोग ढेलफोड़वा वरना पूजा करते हैं. इस पूजा के दौरान मिट्टी को तोड़ना खोदना या धरती माता को किसी भी तरह से हानि पहुंचाना प्रतिबंधित होता है. वहीं दूसरा हरिहरी वरना पूजा का आयोजन होता है. जिस दौरान हरी भरी फसलें लहलहाती रहती हैं और पेड़ पौधों को नुकसान पहुंचाने की मनाही होती है. इस हरिहरी वरना पूजा का ही जिक्र पीएम मोदी ने किया था. इस दिन लोग खुद को 60 घंटे के लिए घरों के कैद कर लेते हैं ताकि पेड़ पौधों को नुकसान नहीं पहुंचाया जाए. उन्होंने बताया कि उरांव जनजाति के जितने भी कर्मकांड या पूजा होते हैं उसमे पेड़ पौधों को ही साक्षी मानकर पूजन किया जाता है.
बिहार में वरना पर्व का आयोजन "वरना पूजा का आयोजन दो बार होता है. एक जब फसलें कट जाती हैं और खेत पूरा खाली हो जाता है. उस दौरान लोग ढेलफोड़वा वरना पूजा करते हैं. इस पूजा के दौरान मिट्टी को तोड़ना खोदना या धरती माता को किसी भी तरह से हानि पहुंचाना प्रतिबंधित होता है. वहीं दूसरा हरिहरी वरना पूजा का आयोजन होता है. जिस दौरान हरी भरी फसलें लहलहाती रहती हैं और पेड़ पौधों को नुकसान पहुंचाने की मनाही होती है. इस हरिहरी वरना पूजा का ही जिक्र पीएम मोदी ने किया था."-नरेश उरांव, पूर्व मुखिया
आदिवासियों के वरना पर्व पर मन की बात