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बेतिया: पुश्तैनी काम सहेजने की कोशिश, नहीं मिली सरकारी मदद

कसेरा टोला गांव के लोग हथौड़ी से बर्तन बनाकर अपने पुश्तैनी काम को बचाने और सहेजने की कोशिश में लगे हुए हैं. इस गांव को पीतल नगरी कहा जाता है. दशकों नहीं बल्कि सैकड़ों साल से यहां के लोग पीतल के बर्तन बनाने का काम कर रहे हैं.

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पीतल के बनाते है बर्तन

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Published : Dec 17, 2019, 11:56 AM IST

बेतिया: भले ही राज्य सरकार ने सूबे में एक भी उद्योग स्थापित नहीं किया हो, लेकिन बेतिया में एक ऐसा गांव है, जो लघु उद्योग के बेहतरीन नमूने पेश कर रहा है. यहां के बनाए गए बर्तन की चमक सिर्फ बिहार में ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों में भी प्रसिद्व है. मझौलिया प्रखंड के कसेरा टोला गांव के लोग कई सालों से पीतल के बर्तन बनाने का पुश्तैनी काम कर रहे हैं. लेकिन जिन सुविधाओं की जरूरत यहां के लोगों को है, वह उन्हें नहीं मिल पा रही है.

सैकड़ों साल से बना रहे पीतल के बर्तन
हथौड़ी से बर्तन पीटकर यह अपने पुश्तैनी काम को बचाने और सहेजने की कोशिश में लगे हुए हैं. मझौलिया के कसेरा टोला गांव को पश्चिमी चंपारण का पीतल नगरी कहा जाता है. दशकों नहीं बल्कि सैकड़ों साल से यहां के लोग पीतल के बर्तन बनाने का काम कर रहे हैं. दूसरे उद्योगों ने जरूर कुछ तरक्की की राह पकड़ ली हो. लेकिन कसेरा गांव के लोग आज भी हाथ और हथौड़े से बर्तन बना रहे.

सैकड़ों साल से बना रहे बर्तन

राज्य सरकार ने नहीं दी कोई सुविधा
मझौलिया प्रखंड के इस कसेरा टोला गांव में लगभग 2 हजार की आबादी रहती है. इस गांव के लोग यहां पीतल के बर्तन बनाने का पुश्तैनी काम कर रहे हैं. लेकिन इन्हें किसी प्रकार की कोई सुविधा नहीं दी गयी है. कारीगरों का कहना है कि सरकार की ओर से कुछ नहीं किया गया है. उन्हें राज्य सरकार से काफी उम्मीदे थी. लेकिन राज्य सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया.

अलग-अगल डिजाइन के बनाते हैं बर्तन

अलग-अलग डिजाइनों के बनाते हैं बर्तन
मेहनत और हाथ के जादू से यहां के लोग पीतल, तांबा ,लोहा, कासा को एक नया रूप देते है. अलग-अलग डिजाइनों के बर्तन बनाते है. कारीगर बर्तन बनाकर उसे बाजार में भी बेचते है. ना कि सिर्फ बिहार में बल्कि उनके बर्तन उत्तर प्रदेश में भी प्रसिद्व है. वहीं, अगर सरकार उनके इस कार्य में उनका सहयोग करे, तो इस गांव के लोग सुबे और देश के नाम को एक नई ऊंचाई दे सकते हैं.

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