पश्चिम चंपारण(बगहा):जिले में संचालित हो रहे सैकड़ों आर्केस्ट्रासंचालकों समेत इसमें काम करने वाले कलाकारों की हालत लॉकडाउन के कारण दिन ब दिन खराब होती जा रही है. इसकी वजह से एक तरफ संचालकों के सामने कलाकारों के राशन पानी का खर्चा उठाना मुश्किल हो गया है. वहीं दूसरी तरफ इसमें नृत्य करने वाली लड़कियों के पास इतने पैसे भी नहीं है कि वे वापस अपने घर लौट सकें.
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लॉकडाउन ने तोड़ी संचालकों की कमर
पश्चिमी चंपारण में आर्केस्ट्रा का चलन काफी ज्यादा है. शादी समारोह के दौरान आर्केस्ट्रा की ज्यादा मांग रहती है. लेकिन कोरोना की वजह से पिछले दो सालों से इस पर काफी ज्यादा असर पड़ रहा है. आर्केस्ट्रा संचालक अपने यहां काम करने वाली लड़कियों को दिल्ली,कोलकाता और नेपाल से बुलाते हैं. ऐसे में अब उनके सामने इन लड़कियों के भरण-पोषण की भी समस्या आ रही है. कोरोना संक्रमण से संबंधित गाइडलाइन के तहत शादी-ब्याह जैसे किसी भी समारोह में डीजे और आर्केस्ट्रा पर पूरी तरह पाबंदी है. लिहाजा लॉकडाउन ने इनकी कमर तोड़ कर रख दी है.
लॉकडाउन में डांसरों के पास नहीं है काम 'दिल्ली, कोलकाता और नेपाल से साल भर के लिए तय राशि पेड कर कलाकारों को लाते हैं और उनके रहने से लेकर राशन पानी की व्यवस्था करते हैं. लेकिन विगत दो वर्षों से कोरोना संक्रमण के मद्देनजर व्यवसाय पर पाबंदी लगा दी जा रही है. लिहाजा एडवांस लिया हुआ पैसा भी वापस करना पड़ रहा है. और कलाकारों का जीवन सिर्फ रियाज तक सिमट कर रह गया है. अब तो हालात ऐसे हो गए हैं कि अपना और कलाकारों का खर्च वहन करना एक बड़ी मुसीबत बन गई है.'- सूरज सहनी, आर्केस्ट्रा संचालक
कलाकारों के सामने दो वक्त की रोटी के लाले शादी ब्याह के सीजन में लॉकडाउन
जिला के सैकड़ों आर्केस्ट्रा संचालकों के समक्ष भुखमरी की स्थिति आ गई है. पिछले दो सालों से काम सही नहीं चल रहा है. शादी ब्याह के सीजन में जब कमाई होती है, उसी समय लॉकडाउन से इन लोगों को जूझना पड़ रहा है.
'पिछले वर्ष भी घर पर पैसा नहीं भेज पाए और इस बार भी वैसे ही हालात हैं. जब काम ही नहीं मिल रहा तो आर्केस्ट्रा संचालक हम कलाकारों को बैठाकर कहां से खिलाएंगे. अब हमारे पास तो घर वापस जाने के लिए भी पैसे नही हैं.- राधिका, डांसर
घर वापसी के लिए नहीं पैसे कलाकारों की मांग
संचालकों समेत कलाकारों की मांग है कि दस दिन के लिए भी शाम 6 बजे से रात 10 बजे तक की मोहलत दे दी जाती तो उनका खर्च निकल जाता और बेरोजगारी की समस्या दूर होती. लेकिन फिलहाल बिहार में कोरोना की दूसरी लहर को कम करने के लिए आर्केस्ट्रा, डीजे से प्रतिबंध हटना मुश्किन लग रहा है. ऐसे में संचालकों और कलाकारों की मुश्किल कम होती नहीं दिख रही.