पश्चिम चंपारण: देश के प्राचीनतम भाषाओं में से एक संस्कृत अब अपनी पहचान खोने की कगार पर है. सरकारी उदासीनता का आलम ये है कि संस्कृत विद्यालयों के भवन जर्जर स्थिति में पहुंच गए हैं. इसके साथ ही न इस विषय के शिक्षक मिल रहे हैं और नौकरी नहीं मिलने की वजह से छात्र भी इसे पढ़ना नहीं चाह रहे हैं.
खतरे में संस्कृत का अस्तित्व
देश की संस्कृति और सभ्यता की पहचान रही संस्कृत भाषा का अस्तित्व खतरे में पड़ता दिख रहा है. सूबे सहित पश्चिम चंपारण जिले में भी संस्कृत विद्यालयों की हालत खस्ताहाल है. भवन काफी पुराने और जर्जर हो चुके हैं. इसके बावजूद सरकार इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रही है.
उपेक्षा की वजह से संस्कृत खो रहा अपनी पहचान छात्र बना रहे दूरी
राज्य संस्कृत बोर्ड द्वारा संचालित हो रहे जिले के अधिकांश संस्कृत विद्यालयों में शिक्षकों की भारी कमी है. संस्कृत विद्यालय के प्रधानाचार्य ने बताया कि इस विषय से पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं के लिए रोजगार के अवसर नहीं है. इस वजह से वर्तमान समय में 8वीं और 10वीं क्लास के बाद कोई छात्र ये विषय पढ़ना नहीं चाहता है.
संस्कृत विद्यालय की जर्जर हालत हो रही उपेक्षा
राज्य सरकार द्वारा इन विद्यालयों में मिड डे मील, छात्रवृति और किताबों के अलावा कोई सुविधा नहीं दी जाती है. यहां तक कि इनको भवन तक नहीं दिया जाता है. सरकार की उपेक्षा की वजह से राज्य में संस्कृत अपनी पहचान खोता जा रहा है.