बगहाः बिहार के पश्चिम चंपारण जिला के बगहा में सालों से कनाडा में रह रहा एक बेटा मां से छठ पूजाकी जिम्मेवारी लेने बगहा (NRI son from Canada reached Bagha for Chhath Puja) पहुंच गया. इस एनआरआई इंजीनियर की मां ने सिर्फ अपने बेटे से इतना भर कहा था कि स्वास्थ्य कारणों से वह अब छठ पूजा नहीं कर पाएगी. इस बार वह छठ पूजा बैठा लेगी. बस इतना सुन आगे छठ पूजा करने की जिम्मेवारी लेने बेटा और बहू कनाडा से बगहा पहुंच गए. पटखौली थाना से सटे नारायणपुर वार्ड नंबर पांच निवासी मनोरमा देवी का एनआरआई बेटा इंजीनियर मृणाल प्रताप सिंह मां के बदले अब स्वयं छठ करेंगे.
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कनाडा से छठ करने बगहा पहुंचा एनआरआई परिवार परंपरा को आगे जारी रखने के लिए छठ पूजा करने की जिम्मेवारी लीः लोक आस्था के महापर्व छठ पर एक से बढ़कर एक निष्ठा के उदाहरण देखने को मिल जाते हैं. कुछ ऐसी ही बानगी बगहा के पटखौली थाना से सटे नारायणापुर वार्ड नम्बर 5 में भी दिखी. यहां रहने वाली मनोरमा देवी ने इस बार NRI बेटे को छठ करने की जिम्मेवारी सौंपी है. बीमारी की वजह से इसबार मां छठ बैठाने जा रही हैं. यह सुनते ही एनआरआई बेटा का मन बेचैन हो उठा और रात दिन एक करके उसने असम्भव से लगने वाले कार्य को सम्भव किया. मां की जगह स्वयं छठ करने सात समंदर पार कर बिहार के बगहा आ पंहुचा. इंडो नेपाल सीमा पर स्थित नारायणी गण्डक नदी तट पर छठ घाट व रास्ते तैयार हैं. यहां लाखों छठव्रती व श्रद्धालु रविवार को अस्ताचलगामी सूर्य की उपासना व अर्घ्य देने जुटेंगें वहीं सोमवार को अहले सुबह भगवागन भास्कर को अर्घ्य देकर महापर्व छठ का समापन किया जायेगा.
एनआरआई बेटा खुद कर रहा छठःइस बार नारायणपुर बगहा के छठ घाट पर इंजीनियर मृणाल प्रताप सिंह स्वयं छठ करने पहुंचे हैं और यही वजह है कि घर परिवार में बेहद खुशी व हर्षोल्लास के साथ नहाय खाये के बाद खरना भी संपन्न हो गया. छठी मईया की गीतों के साथ आज अस्ताचलगामी सूर्य को प्रथम अर्घ्य देने की तैयारी चल रही है. कनाडा में वर्षों से कार्यरत सॉफ्टवेयर इंजीनियर मृणाल व उनकी पत्नी ई. सुरभि बताते हैं कि सबसे कठिनाई बच्ची के लिए ओवरसीज कार्ड ऑफ इंडिया (ओसीआई कार्ड) बनवाने में हुई. फिर एक दुधमुंही बच्ची के साथ 16 घंटे की हवाई यात्रा व लगभग 24 घंटे की रेलयात्रा आसान नहीं था. लेकिन उनके आंखों के सामने बचपन की वह तस्वीरें नाचने लगी थीं जो छठ की यादों को और जीवंत करने लगा. लिहाजा वतन वापसी हुई है.
"मेरी सास ने तीन चार माह पहले बताया कि घुटने में दर्ज और तबीयत खराब होने के कारण अब मैं छठ पूजा नहीं कर पाउंगी. इसके बाद मैं और मेरे पति ने घर जाकर खुद छठ पूजा करने का फैसला लिया. चूंकि अभी मेरी बच्ची छोटी है तो मैं तो छठ नहीं कर पाउंगी. इसलिए मेरे पति ने खुद से छठ पूजा करने का फैसला लिया. छोटी बच्ची को फ्लाईट से यहां तक लाने में परेशानी तो हुई, लेकिन छठ मैईया की कृपा से सब कुछ बढ़िया है"- इंजीनियर सुरभि, NRI
कनाडा से छठ पूजा करने आई मां-बेटी छठ का नाम सुनते ही बचपन की याद हो जाती है ताजाःइंजीनियर मृणाल बताते हैं कि बचपन में वह दउरा माथा पर लेकर नारायणी नदी के तट पर जाया करते थे. नीम अंधेरे, गन्ना व हाथी के साथ कोसी भरने जानते थे. फिर घाट से ठेकुआ के प्रसाद का सिलसिला शुरू हो जाता था. बचपन की स्मृतियों के सजीव होने के साथ ही यह भी ज्ञान हुआ कि कहीं मेरे चलते परिवार की यह परंपरा टूट न जाये और आस्था व सूर्य उपासना का अनुष्ठान छूट न जाये. इसलिये रात-दिन एक करके विदेश यात्रा को संभव बनाया. छठव्रती इंजीनियर मृणाल बताते हैं कि दादी ने उम्र के एक पड़ाव पर इस व्रत व विरासत को उनके मां को सौंप दिया था. फिर मां ने बड़ी निष्ठा के साथ दशकों इस व्रत का निर्वाह किया. कई बार मैं आ जाता था, लेकिन अक्सर महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट में कार्यरत होने की वजह से छुट्टी नहीं मिल पाती थी और आना सम्भव नहीं हो पाता था. इस दफे मां ने असमर्थता जतायी तो वे खुद को रोक नहीं सके.
"मैं और मेरी पत्नी कनाडा में कार्यरत हैं. तीन-चार महीने पहले मां का काॅल आया कि तबीयत खराब होने की वजह से इस बार मैं अंतिम बार छठ कर रही हूं आ जाओ. यहां बहुत ही मुश्किल से हमलोग पहुंचे. यहां आने के बाद लगा कि अब तो छठ पूजा करने की परंपरा खत्म हो जाएगी. इसलिए हमने फैसला किया कि अब खुद छठ पूजा करुंगा और इस परंपरा को आगे भी जारी रखूंगा"- इंजीनियर मृणाल प्रताप सिंह, NRI छठव्रती बेटा
छठ पूजा में घर आकर काफी खुश है परिवारःगौरतलब हो कि कोरोना काल के बाद भीड़ की वजह से वतन वापसी बड़ी मुश्किल थी. फिर भी कड़ी मेहनत व मशक्कत के बाद NRI दम्पति का दुधमुंहे बच्चे के साथ वतन वापसी सम्भव हो पाया और सपरिवार अपने गांव नारायणपुर बगहा आ सके. सबसे बड़ी बात चार दिनों के अनुष्ठान में लोक आस्था और सूर्य उपासना के साथ अर्घ्य देने का है. इसमें मन्नतें निहित होती हैं. लिहाजा NRI दम्पति को बड़ी खुशी है कि लोकआस्था के महापर्व में अपने परिवार के साथ इस बड़ी जिम्मेवारी और अनुष्ठान का निर्वहन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है.
"मैं 35 वर्ष से छठ पूजा करती आई हूं. लेकिन इस बार तबीयत खराब होने की वजह इस बार छठ पूजा करने में सक्षम नहीं थी. यह बात मैंने अपने बेटे को बताई. विदेश से यहां आने की तमाम परेशानियों के बाद भी वह अपनी परंपरा को नहीं भूला है और खुद से छठ उठाने के लिए वह कनाडा से बहू और बच्चे के साथ घर आ गया है. मैं बहुत खुश हूं. अब मेरा बेटा ही छठ पूजा करेगा" - मनोरमा देवी, छठव्रती की मां