पश्चिमी चंपारण: जिले के वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के घने जंगल के बीच स्थित मां नरदेवी की महिमा अपरंपार मानी जाती है. बगहा मुख्यालय से 45 किमी दूर स्थित इस मंदिर में वैसे तो सालों भर भक्तों का तांता लगा रहता है. लेकिन नवरात्र के महीने में यहां विशेष पूजा अर्चना की जाती है. वहीं, लोगों की मान्यता है कि यहां दर्शन मात्र से ही भक्तों की मनोकामनाएं पूरी हो जाती है.
पश्चिमी चंपारण: जंगल के बीच बसी नरदेवी की महिमा है अपार, दूर-दूर से आते हैं भक्त
बगहा मुख्यालय से 45 किमी दूर स्थित इस मंदिर में वैसे तो सालों भर भक्तों का तांता लगा रहता है. लेकिन नवरात्रा में इस मंदिर में विशेष पूजा होती है.
स्थापना के पीछे छिपी है रोचक कहानी
वाल्मीकिनगर के ऐतिहासिक नरदेवी की स्थापना के पीछे एक रोचक कहानी छिपी है. पुरानी मान्यताओं के अनुसार इस जगह पर बुन्देलखण्ड के राजा अल्ला और ऊदल आया करते थे. दुर्गम जंगलों के बीच स्थित इस मंदिर में वो दिन-रात मां की आराधना में लगे रहते थे. पूजा सम्पन्न होने के बाद ऊदल बलि के तौर पर अपना सिर काट कर चढाते थे. उसके बाद उनका सिर स्वयं से जुड़ जाता था. चूंकि यहां नर की बलि दी जाती थी. इसलिए इस स्थान का नाम नरदेवी पड़ा है.
मंदिर का इतिहास काफी पुराना
मान्यताओं के अनुसार यहां नरदेवी मां अपने भक्तों को कभी खाली हाथ नहीं लौटाती. मंदिर के पुजारी नागेंद्रनाथ पूरी का कहना है कि यह मंदिर अल्ला और ऊदल से सबंधित है. यहां जंगली जानवर बाघ, जंगली सूअर, भालू इत्यादि आते हैं. लेकिन आज तक भक्तों के साथ बुरा नहीं हुआ. वहीं, इस मंदिर की प्रसिद्धि और ख्याति इतनी दूर-दूर तक फैली है कि लोग उत्तरप्रदेश, नेपाल और राज्य के दूर दराज के क्षेत्रों से दर्शन के लिए आते हैं. उत्तरप्रदेश के महराजगंज जिले से आये कृति तिवारी और सुमन तिवारी ने बताया कि नरदेवी मां के दर्शन मात्र से ही सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है. इसलिए भक्त प्रतिवर्ष इस मंदिर में पूजा अर्चना करने आते हैं.