बगहा:जिले में इन दिनों एक खास किस्म के धान की खेती चर्चा का विषय बना हुआ है. इसे उगाने के लिए किसी रासायनिक खाद की जरुरत नहीं पड़ती है. बिहार में पहली बार इसकी खेती रामनगर के एक किसान विजय गिरी ने की है. इसकी उन्नत पैदावार देखकर अन्य किसानों का भी रुझान भी इस तरफ बढ़ा है.
खुद पक जाता है यह चावल
चमत्कारी गुणों से भरपूर एक खास किस्म के चावल की खेती बिहार के पश्चिमी चंपारण में शुरू हुई है. जिसका नाम है मैजिक चावल और इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे पारम्परिक तरीके से नहीं बनाना पड़ता है. यानी इसको पकाने में ईंधन की जरूरत नहीं पड़ती है ठंडे पानी में चावल आधा घंटे के लिए छोड़ दिया जाए तो खाने के लिए भात बनकर तैयार हो जाता है.
बिहार में पहली दफा हुआ है उत्पादन
रामनगर के हरपुर गांव निवासी विजय गिरी और अवधेश सिंह जैसे किसानों ने इस साल पहली बार बिहार में इस मैजिक चावल की खेती की. किसान विजय गिरी का कहना है कि यह चावल दुर्गम स्थलों पर रहने वाले सैनिकों और आपदा के समय बिना ईंधन के बनाना हो तो वरदान साबित हो सकता है. साथ ही अपने एंटीऑक्सीडेंट गुणों की वजह से डायबिटीज रोगियों के लिए रामबाण औषधि साबित हो सकता है.
बाढ़ के बावजूद हुई अच्छी पैदावार
वहीं, इस सीजन बरसात में लगातार भारी बारिश हुई जिस कारण कई इलाकों के किसानों की फसल बाढ़ की भेंट चढ़ गई. इस इलाके में भी खेतों में लंबे समय तक पानी लबालब भरा था बावजूद इसके मैजिक राईस की पैदावार काफी बेहतर हुई है. लिहाजा आस-पास के किसान मैजिक राईस की कटाई देखने पहुंचे और अन्य किसानों का झुकाव भी इस प्रजाति के चावल की खेती करने के तरफ हुआ है.
आर्थिक समृद्धि लाएगी मैजिक राईस
बता दें कि बाजार में मैजिक चावल 100 से 150 रुपये किलो तक बिक सकता है. यही वजह की अच्छी पैदावार से खुश किसानों का मानना है कि यदि प्रशासनिक स्तर पर मैजिक राइस की खेती को बढ़ावा दिया जाए तो इसकी खेती करने से कृषि के क्षेत्र में आर्थिक क्रांति आ सकती है. इस साल बाढ़ की त्रासदी के बावजूद भी इसकी पैदावार ने चेहरे पर चमक ला दी है. ऐसे में असम के माजुला द्वीप पर उपजने वाला मैजिक राइस बिहार के किसानों के बीच कितना मैजिक दिखाता है और किसानों को समृद्ध बनाता है देखने वाली बात होगी.