देख रहें हैं केके पाठक जी.. इस सरकारी स्कूल का हाल बेतिया : लगता है बिहार शिक्षा विभाग के अपर सचिव केके पाठक ने स्कूलों का दौरा करना छोड़ दिया है. इसका अंदाजा बेतिया के राजकीय प्राथमिक विद्यालय भगवानपुर की दुर्दशा को देखकर लगाया जा सकता है. स्कूल में दो-दो महिला शिक्षकों के मौजूद रहने के बावजूद हेडमास्टर जी गमछा और बनियान में स्कूल के प्रधानाचार्य कक्ष में हवा ले रहे हैं. एक ही कक्षा में एक से लेकर 7वीं तक के बच्चे पढ़ रहे हैं. पूरे स्कूल में महज 15 से 20 छात्रों की मौजूदगी नजर आ रही है. पूछे जाने पर बेतुके तर्क दे रहे हैं.
ये भी पढ़ें- Ground Report: बिहार में शिक्षा के लिए संघर्ष... गंगा की उफनती लहरों के बीच रोज नाव पर पटना पढ़ने आते हैं सैकड़ों बच्चे
'सरकारी स्कूलों में गरीबों और दलितों के बच्चे पढ़ते हैं..' : इस मामले में जब क्लासरूम में शिक्षक से पूछा गया तो उन्होंने बच्चों की गैरमौजूदगी के कई कारण गिना डाले. स्कूल की मैडम ने भी आसपास के नदी-नाले को जिम्मेदार ठहराने लगीं. यहां के हेडमास्टर तो एक कदम आगे बढ़ गए. कहने लगे ''सरकारी स्कूल में गरीब और दलितों के बच्चे पढ़ने आते हैं. यहां गरीब और दलितों के बच्चे हैं नहीं, जो हैं वो यहां पढ़ रहे हैं.''
स्कूल में ऑन ड्यूटी आराम फरमाते हेडमास्टर साहब 1 क्लास रूम में 7वीं तक की क्लास : इस स्कूल में 75 बच्चे नामांकित हैं. लेकिन मौजूदगी 15 से 20 बच्चों की दिख रही है. हेडमास्टर समेत स्कूल में कुल 4 शिक्षक है. स्कूल की बिल्डिंग पर नजर डालें तो दो कमरे खुले हैं. एक में एक से लेकर 7वीं तक के बच्चे बैठकर पढ़ रहे हैं तो दूसरे कमरे में हेडमास्टर साहब 'होनोलूलू की हवा' गमछे और बनियान में खा रहे हैं. बाकी कमरे ऐसे लग रहे हैं जैसे मानो गोदाम हों. स्कूल की दीवार बदरंग हो चुकी है. देखने में पूरा स्कूल जर्जर दिख रहा है.
एक कक्षा में 1 से 7वीं तक पढ़ते बच्चे केके पाठक जी देखिए इस स्कूल का हाल : स्कूल में 8वीं के छात्र कहीं दिख नहीं रहे हैं. जबकि हेडमास्टर साहब दावा कर रहे हैं कि अर्धवार्षिक परीक्षा चल रही है. मध्याह्न भोजन का कुछ अता-पता ही नहीं चल रहा है. ऐसा लग रहा है कि जैसे इस स्कूल में कोई अफसर या अधिकारी निरीक्षण भी करने नहीं पहुंचता होगा. ड्यूटी टाइम में हेडमास्टर साहब स्कूल में जिस तरह बैठे नजर आ रहे हैं उससे यही तस्वीर उभरकर सामने आ रही है.
भगवानपुर स्कूल का भगवान ही मालिक : केके पाठक यहां नहीं पहुंच पा रहे हैं तो कोई बात नहीं, ईटीवी भारत की टीम ने इस स्कूल की जमीनी हकीकत कहीं ज्यादा अच्छे से दिखा और बता दी है. तय जिले के अफसरों और जिम्मेदारों को तय करना है कि इस स्कूल का क्या करें? यहां तैनात मास्टरों का क्या इंतजाम करें. ऐसी सोच अगर हेडमास्टर रखते हों तो फिर शिक्षा कितनी भगवानपुर के इस सरकारी विद्यालय में नौनिहालों को मिलेगी उसका भगवान ही मालिक है.