बेतिया: नेपाल से भारत में प्रवेश करने वाली नदियां दोनों देशों में हो रही बारिश के बाद उफान पर रहती हैं. ऐसे में बिहार में बाढ़ की सबसे बड़ी वजह यही नदियां बनती हैं. इन दिनों नेपाल बॉर्डर से सटा पश्चिमी चंपारण बाढ़ से त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रहा है. ईटीवी भारत रिपोर्टर जितेंद्र कुमार गुप्ता ने ग्राउंड से जो तस्वीरें भेजीं, वो बाढ़ का पूरा मंजर दिखा रही हैं.
गांव के गांव जलमग्न नजर आ रहे हैं. जब संवाददाता बेतिया के बाढ़ प्रभावित इलाकों में पहुंचे, तो उन्होंने देखा जहां सड़कें थीं. वहां अब सिर्फ पानी ही पानी नजर आ रहा है. पूरे इलाके का नजारा समंदर जैसा लगा. मुसीबतों से जूझ रहे ग्रामीणों ने खुद की नाव पर उन्हें इलाके का दौरा कराया. इस दौरान ग्रामीणों ने कहा कि सिर्फ ईटीवी भारत ही उनकी सुध लेने आया है. अभी तक सरकार की ओर से कोई भी अधिकारी उनका हाल चाल जानने नहीं पहुंचा.
ग्राउंड रिपोर्ट
बिहार का पश्चिम चंपारण जिला एक तरफ नेपाल, तो दूसरी तरफ यूपी से सटा है. पश्चिम चंपारण की प्रमुख नदिया गंडक, बूढ़ी गंडक, मसान सभी उफान पर हैं. पश्चिम चंपारण के अंतिम छोड़ बगहा में वाल्मीमिकि नगर डैम है. जिसे भैंसालोटन डैम भी कहा जाता है. यह डैम नेपाल से आने वाली तीन नदियों के संगम के ऊपर बनाया गया है. बिहार में जिसे गंडक कहते हैं. नेपाल में इस डैम को नारायणी के नाम से जाना जाता है. यही पर नेपाल का त्रिवेणी शहर है.
वैसे तो इन इलाकों में हर साल बाढ़ आती है. लेकिन इस वर्ष इस डैम पर जब पानी का दबाव बढ़ा, तो दो बार मे साढ़े आठ लाख क्यूसेक पानी डिस्चार्ज करना पड़ा. इसका नतीजा यह रहा कि गंडक और उसकी सहायक नदियों में तूफान आ गया. गंडक नदी पर कई इलाकों में बना बांध टूट गया. गंडक की उफनाती धारा जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है. बेतिया के कई इलाकों में जल तांडव मचा रही है.
जलमग्न हैं ये इलाके
पश्चिम चंपारण के जिला मुख्यालय बेतिया से करीब 15 किलोमीटर दूर मझौलिया में बूढ़ी गंडक ने भारी तबाही मचाई है. जिला मुख्यालय से सैकड़ों गांवों का संपर्क पूरी तरह टूट गया है. सबसे हैरत की बात है कि इन इलाकों में अभी तक लोगों का रेस्क्यू करने के लिए ना तो एनडीआरएफ टीम आई है और ना ही और एसडीआरएफ. ऐसे में गांवों तक पहुंचना बहुत कठिन है. लेकिन ईटीवी भारत की टीम जब यहां पहुंची, तो ग्रामीणों ने जिद कर गांव के हालातों को दिखाने के लिए नाव की व्यवस्था की.
हालातों का जायजा ले रहे रिपोर्टर के मुताबिक, 'जैसे-जैसे नाव से आगे बढ़ रहे थे, तस्वीरें उतना ही डरा रही थीं. जहां तक नजरें जा रही थीं. सिर्फ और सिर्फ पानी ही पानी नजर आ रहा था. जिस जलमार्ग से नाव गुजर रही थी. असल में वो किसानों के वो खेत थे, जो फसलों से लहलाते थे. खेत-खलिहान, स्कूल सब पानी मे डूबे हुए थे. इन सबके बीच कुछ ग्रामीणों को जिंदगी की जद्दोजहद करते हुए भी देखा.'