बगहा : बिहार के बगहा के आदिवासी बहुल गांव की दर्जनों महिलाएं मछली का अचार बनाकर आत्मिनिर्भरता की मिशाल पेश कर रहीं हैं. कोरोना काल में जब मछलियों की बिक्री कम होने लगी थी. तब जीविका समूह की महिलाओं के लिए यही मछलियां वरदान साबित हुईं और आज इनके बनाए मछली के अचार की भारी डिमांड है. बिहार का एक ऐसा आदिवासी बहुल गांव जहां की नारी शक्ति आपदा में अवसर की तलाश कर स्वावलंबी बनने की राह पर चल पड़ी हैं.
मझौआ गांव की आदिवासी महिलाएं बनाती हैं अचार : दरअसल, जीविका से जुड़ी दर्जनों महिलाएं विभिन्न प्रजाति की मछलियों का अचार बनाकर अपना व्यवसाय कर रही हैं और इससे उनको अच्छी खासी आमदनी हो रही है. बगहा अनुमंडल क्षेत्र के एक छोटे से गांव मझौआ में महिलाएं बिना किसी प्लांट के हैंड मेड 'फिश पिकल' बना रहीं हैं. बता दें कि मझौआ गांव के रामजी सिंह महतो ने कोरोना महामारी के पूर्व उत्तराखंड के पंत नगर से मछली का अचार बनाने का प्रशिक्षण लिया था.
उत्तराखंड से प्रशिक्षण लेकर महिलाओं को सिखाया अचार बनाना : 21 दिनों तक प्रशिक्षण लेने के बाद उन्होंने अपने गांव का रुख कर लिया. इसी बीच वैश्विक महामारी कोरोना ने अपना विनाशकारी रूप ले लिया. जब पूरा विश्व कोरोना संकट से जूझ रहा था. तब मछलियों की बिक्री काफी कम हो गई. लिहाजा राम सिंह महतो ने आपदा में अवसर तलाश लिया और अपने घर के अगल बगल की दर्जनों महिलाओं को प्रशिक्षित कर वे मछली का अचार बनाने लगे.
गंडक नदी साबित हो रही है वरदान : गंडक नदी भी इनके लिए वरदान साबित हुई. क्योंकि गंडक नदी में कई प्रजाति की मछलियां मिलती हैं. इन मछलियों का अचार काफी ऊंची कीमत पर बिकता है. बता दें कि, कोरोना संकट के बाद जब सब कुछ सामान्य होने लगा तो इन महिलाओं ने अपने बनाए अचार का मेला या अन्य फेयर में स्टॉल लगाना शुरू किया. आज इनका स्थाई स्टॉल थरुहट के हरनाटांड़ में है. इसके अलावा जीविका की ओर से लगाए जाने वाली प्रदर्शनी में भी इनका स्टॉल लगता है. साथ ही दिल्ली जैसे शहरों में भी विशेष मौकों पर ये अपना स्टॉल लगाते हैं.