बेतिया:देश को आजादी दिलाने में अपना सबकुछ गंवाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों का परिवार आज गुमनामी की जिंदगी जीने के मजबूर है. दिवंगत स्वतंत्रता सेनानी शेर बहादुर सिंह नेपाली की पत्नी आज बेबस और बेसहारा हैं. वीर की पत्नी के हालात इस कदर हैं कि वह दाने-दाने के लिए मोहताज हैं.
वीर की पत्नी 85 वर्षीया जानकी देवी से जो भी मिलने जाता है उन्हें वह बड़े गर्व से कहतीं हैं कि 'मेरे मालिक ने देश को आजाद कराया था.' लेकिन, अगले ही पल उनका स्वर रुआंसा हो जाता है. अपने को असहाय महसूस कर वह कहतीं हैं कि 'कोई दवा करा दो, कोई तो खाना खिला दो.'
छलका सेनानी की विधवा का दर्द साल 2012 में हुई थी मौत
दिवंगत स्वतंत्रता सेनानी शेर बहादुर सिंह नेपाली की मृत्यु साल 2012 में फरवरी महीने में हो गई थी. पति की मौत के बाद से उनकी पत्नी आज दाने-दाने के लिए मोहताज हो चुकी हैं. परिस्थिति ऐसी है कि जानकी देवी को दवा भी नसीब नहीं हो पा रही है. मालूम हो कि जानकी देवी ना तो ठीक से देख पाती हैं और ना ही सुन पाती हैं. सरकारी तंत्र ने भी इनका साथ छोड़ दिया है.
सेनानी शेर बहादुर सिंह नेपाली की फाइल फोटो मृत्यु के बाद से नहीं मिला पेंशन
जानकी देवी के पति की मृत्यु के बाद से ही उनको पेंशन नहीं मिली है. ऐसे में आज बहादुर वीर की आत्मा भी रोती होगी कि उन्होंने जिस देश और समाज के लिए कुर्बानी दी, आज उन्हीं के परिवार को कोई देखने वाला नहीं है. उनकी अकेली पत्नी के शब्दों को सुनने वाला कोई नहीं है. सरकारी मदद की आस में जानकी देवी बेतिया से पटना, दिल्ली तक चक्कर लगा चुकी हैं. लेकिन, कोई असर नहीं हुआ.
ओरिजनल पीपीओ नहीं होने से रुका है पेंशन
पेंशन के लिए साल 2012 के बाद बैंक ने जानकी देवी से पति का डेथ सर्टिफिकेट मांगा. उन्होंने दिया भी, सारे कागजात जमा करा दिए गए. लेकिन, पीपीओ का ओरिजिनल कागज नहीं होने के कारण बैंक ने पेंशन पर रोक लगा दी. जबकि जानकी देवी के पास पीपीओ की फोटो कॉपी है. लेकिन, बैंक ने अस्वीकार कर दिया है.
डीएम की गुहार पर भी नहीं हुई सुनवाई
इस बाबत बेतिया डीएम ने भी बैंक को पत्र लिखा कि जानकी देवी को पेंशन मिलनी चाहिए. इसके बावजूद उन्हें कोई फायदा नहीं हुआ. जब बैंक से पूछा गया कि पीपीओ की एक कॉपी आपके पास भी हो होती है, तो इसके जवाब में बैंक ने लिखित बयान दिया कि हमारे ब्रांच से पीपीओ खो गया है. इसलिए, जब तक पीपीओ नहीं आएगा तब तक पेंशन नहीं मिलेगा.
नतीजतन, सिस्टम की लापरवाही से एक स्वतंत्र सेनानी की विधवा आजाद देश में दाने-दाने के लिए मोहताज हो गई है. वह दूसरों से भोजन और दवा के लिए भीख मांग रही हैं.