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मशहूर है बगहा के अनंदी का भूजा-चोखा, CM नीतीश भी हैं इसके शौकीन

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी जब चंपारण की यात्रा पर आते हैं, तो अनंदी के भूजा और भंसार के गर्म बालू में पकाए हुए आलू के चोखे का स्वाद लेना नहीं भूलते. दोपहर के नाश्ते के तौर पर विशेष रूप से उनके खाने के लिए इंतजाम करवाया जाता है.

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Published : Jun 10, 2020, 10:01 AM IST

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बगहाः बिहार में बात अगर खाने की हो तो कई सारे पारंपरिक व्यंजन का जिक्र खुद ब खुद जुबां पर आ जाता है. खासकर बिहार में लिट्टी-चोखा और दही-चूड़ा की चर्चा तो आम है. लेकिन पश्चिम चंपारण में इससे इतर एक अलग प्रजाति के चावल अनंदी का भूजा और चोखा काफी प्रसिद्ध है और प्रत्येक दिन नाश्ते में लोग इसे ही खाना पसंद करते हैं. लॉकडाउन में इस भूजा की वजह से ही कई लोगों का भरण पोषण है.

बगहा में फेमस है अनंदी चावल का भूजा और चोखा
इस बात में कोई शक नहीं कि लिट्टी-चोखा राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध बिहार का एक चर्चित डिश है. लेकिन प्रत्येक जिले का अपना पसंदीदा डिश भी होता है. इसी में शामिल है पश्चिम चम्पारण जिले का मशहूर अनंदीका भूजा, जिसकी प्रसिद्धी लिट्टी-चोखा से कम नहीं है. दरअसल अनंदी एक अलग किस्म के धान की पैदावार है. जिसके चावल का उपयोग सिर्फ भूजा के तौर पर ही होता है. ये काफी नरम, स्वादिष्ट और लजीज होता है.

भूजा भूजती महिलाएं

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी नहीं भूलते भूजा-चोखा खाना
अनंदी प्रजाति का चावल और भूजा मुख्यतः चंपारण के तराई क्षेत्रों में बसे थरुहट समुदाय के लोगों का प्रसिद्ध उत्पादन है. इस इलाके में शादी-ब्याह या किसी भी तरह के आयोजन में भूजा-गुड़ और भूजा-चोखा लोगों को विशेष तौर पर खाने के लिए दिया जाता है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी जब चंपारण की यात्रा पर आते हैं, तो अनंदी के भूजा और भंसार के गर्म बालू में पकाए हुए आलू के चोखे का स्वाद लेना नहीं भूलते. दोपहर के नाश्ते के तौर पर विशेष रूप से उनके खाने के लिए इंतजाम करवाया जाता है.

देखें पूरी रिपोर्ट

लॉकडाउन में कई परिवारों के भरण पोषण का जरिया बना भूजा
कोरोना संक्रमण की वजह से लगे लॉकडाउन में जब निचले तबके के लोगों के हालात खराब होने लगे और राशन पानी की समस्या गहराने लगी, तो यही भूजा उनके जीविकोपार्जन का जरिया बना. दरअसल लॉकडाउन में भूजा भूजने वाले पेशेवर लोगों ने इसी के जरिए अपने परिवार का भरण पोषण किया.

भूजा

बता दें कि भूजा भुजने के लिए आज भी गांवों में जो भंसार (गोंसार) जलता है. उसमें जो लोग भी भूजा भुजवाने आते हैं, वो भूजा भुजवाने के एवज में चावल या पैसे के रूप में मेहनताना देते हैं और इसी पारिश्रमिक से कई गोंसार चलाने वालों के परिवार के लिए राशन का जुगाड़ भी हुआ है.

भूजा-चोखा खाते लोग

पारंपरिक नाश्ते के रूप में प्रसिद्ध है भूजा और चोखा
जिले में भूजा और चोखा आज भी परंपरागत नाश्ते के तौर पर मशहूर है. हालांकि अधिकांश लोग गांव छोड़ शहर में बस गए थे. जिस वजह से भूजा भूजने वाले गोंसार के आग की लौ धीमी पड़ गई थी. लेकिन लॉकडाउन में भारी संख्या में लौटे मजदूर और अन्य वर्ग के लोगों की वजह से फिर भूजा-चोखा खाने की परंपरा जीवित होती दिख रही है.लोगों का कहना है कि भूजा और चोखा की मिठास कभी भुलाई नहीं जा सकती.

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