बेतिया: बिहार राज्य का बेतिया शहर राजधानी पटना से 210 किमी. दूर पश्चिम चंपारण के भारत-नेपाल सीमा के नजदीक जिला मुख्यालय में स्थित है. कहते हैं कि हर जगह की अपनी एक खासीयत, एक पहचान होती है. ऐसे में बेतिया शहर भी कभी अपनी पहचान के लिए देशभर में मशहूर हुआ करता था. लेकिन बेतिया का नामकरण जिसके आधार पर किया गया, आज उसी पहचान का अस्तित्व खत्म होने के कगार पर है.
बेतिया नाम क्यों पड़ा?:कभीपश्चिमी चंपारण जिले का बेतिया शहर चारों तरफ से बेंत की लकड़ी से घिरा होता था. बेतिया के कई इलाकों में बड़े पैमाने पर बेंत मिलते थे. बेंत की लकड़ी की खेती के लिए मशहूर होने की वजह से शहर का नाम 'बेतिया' पड़ा. लेकिन आज वह सिमट कर कुछ जंगलों में ही रह गया है.
उदयपुर वन्यप्राणी आश्रयणी के जंगल में बेंत की लकड़ी इस जंगल में होता है बेंत का उत्पादन: जिला मुख्यालय से सटा बैरिया प्रखंड में उदयपुर वन्य प्राणी आश्रयणी जंगल स्थित हैं. यह जंगल पर्यटकों के लिए भी खुली रहती है और इसका लुफ्त उठाने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं. इस जंगल में बड़े पैमाने पर बेंत की लकड़ी मिलती है. बेंत का झुरमुट एक बार तैयार हो जाने के बाद यह निरंतर बेंत का उत्पादन करते रहते हैं. जंगल के चारों तरफ बेंत ही बेंत मिलता है. यह जंगल वन विभाग की निगरानी में है.
बेंत की लकड़ी का प्रयोग: इस घने जंगल में जहां तक नजर जाए वहां तक बेंत का झुरमुट देखने को मिलते हैं. बेंत की लकड़ी नदी किनारे वाले क्षेत्र में ज्यादा मिलती है. बेंत की लकड़ी से काफी मजबूत व टिकाऊ फर्नीचर बनता है. इसके अतिरिक्त बेंत को छीलना और पॉलिश करना काफी सरल होता है. यह उपोष्ण और उष्ण कटिबन्धीय जलवायु का पौधा है. यह साधारण रूप से पेड़ों के सहारे झुरमुटों के रूप में उगता है.
कैसे उगते हैं बेंत? :बता दें कि बेंत अकेले भी उग सकते हैं, लेकिन कुछ मीटर जाने के बाद पुन: ढह जाता है. यह दलदली या जल जमाव वाले स्थानों पर भी उगते हैं. इसमें सूखा सहने की क्षमता भी होती है. पानी की उपलब्धता में इसकी वृद्धि दर काफी तेज होती है. बेंत का झुरमुट एक बार तैयार हो जाने के बाद यह निरंतर बेंत का उत्पादन करते रहते हैं.
बेतिया की पहचान का अस्तित्व खत्म:बता दें कि बेंत की लकड़ी पश्चिमी चंपारण जिले के वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में भी मिलती है. जिले के कई क्षेत्रों में पहले बड़े पैमाने पर बेंत की लकड़ी मिलती थी. लेकिन आज बेंत की लकड़ी का अस्तित्व लगभग खत्म हो चुका है. सभी जगह से बेंत की लकड़ी काट दिए गए हैं और वहां पर बड़े-बड़े आलीशान मकान बन गए हैं.
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