बेतियाः प्रदेश में बारिश शुरू होते ही हर साल बाढ़ का प्रकोप देखने को मिलता है. इस दौरान बूढ़ी गंडक के किनारे बसे बगहा शहर के लोग हर साल कटाव की विभीषिका झेलते हैं. ऐसे में मॉनसून से पहले प्रशासन के ढीले रवैये से कटावरोधी कार्यों की गति धीरे है.
बारिश से पहले प्रशासन दियारा क्षेत्रों में बाढ़ से बचाव के इंतजाम के दावे कर रही है. प्रशासन का कहना है कि मॉनसून से पहले कटाव रोधी कार्य पूरा किया जा रहा है. फिर भी हर साल की तरह यहां लोग भयभीत हैं, क्योंकि दावों के बीच हर साल यहां गण्डक की तबाही का मंजर देखने को मिलता है.
रौद्र रूप की बलि चढ़ते हैं गांव
गन, गंडक और गन्ना तीनों से तबाह रहने वाले मिनी चम्बल के नाम से मशहूर पश्चिम चंपारण का बगहा भले ही गन की तबाही से उबर गया. इसके बाद मिनी चंबल की छवि भी लगभग मिट चूकी है, लेकिन आज भी यहां के लोग गन्ना और गण्डक की मार झेलने को मजबूर हैं. पूरा बगहा शहर ही गण्डक नदी के किनारे बसा है. ऐसे में बरसात जब अपने पूरे शबाब पर रहती है तो गण्डक नदी अपना विकराल रूप धारण कर लेती है. जिसमें दियारा और बगहा अनुमंडल समेत पश्चिम चंपारण के सैकड़ों गांवों जो गण्डक नदी के किनारे बसे हैं, वे इस नदी के रौद्र रूप की बलि चढ़ जाते हैं.