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बगहा: संस्कृत विद्यालय खंडहर में तब्दील, सरकार नहीं दे रही ध्यान

बगहा में राज्याश्रय के अभाव में संस्कृत विद्यालय खंडहर में तब्दील हो रहे हैं. वहीं इसके शिक्षा को बढ़ावा भी नहीं दिया जा रहा है.

bagha sanskrit school
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Published : Feb 2, 2021, 4:58 PM IST

Updated : Feb 2, 2021, 8:04 PM IST

बगहा: जिले में संस्कृत शिक्षा राज्याश्रय के अभाव में अपना गौरव खोता जा रहा है.संस्कृत शिक्षा को रोजगारपरक शिक्षा बनाने के लिए प्रयास नहीं किया जा रहा है. लिहाजा आकर्षण के बावजूद छात्र-छात्राएं संस्कृत शिक्षा से वंचित होते जा रहे हैं. हालात यह है कि जिले के दर्जनों संस्कृत विद्यालयों में से अधिकांश में ताले लटक रहे हैं तो, कई विद्यालयों के भवन खंडहर में तब्दील हो गए हैं.

विद्यालयों की हालत दयनीय
संस्कृत सबसे प्राचीन भाषाओं में से एक है. कहा जाता है कि यही अन्य भाषाओं की जननी है. इसी भाषा से भारतीय सभ्यता और संस्कृति के विकास का उद्भव हुआ. लेकिन जिला में संस्कृत विद्यालयों की हालत दयनीय हो चुकी है और इसके शिक्षा को बढ़ावा नहीं दिया जा रहा है. लिहाजा विद्यार्थियों का एक बड़ा तबका आकर्षण के बावजूद इसकी शिक्षा से महरूम होता जा रहा है.

अधिकांश विधालय में लटके हैं ताले

सरकार नहीं दे रही बढ़ावा
संस्कृत भारती संस्था के अध्यक्ष का कहना है कि राज्याश्रय के अभाव में यह भाषा अपना गौरव खो रही है. जिला में कुल 12 संस्कृत विद्यालय हैं जिसमें चार उच्च विद्यालय, चार मध्य विद्यालय और दो प्राइमरी विद्यालय शामिल हैं. लेकिन जागरुकता और सरकार द्वारा बढ़ावा देने के अभाव में विद्यार्थियों की संख्या तो घट ही रही है, विद्यालय के भवनों की भी स्थिति जीर्ण-शीर्ण हो गई है.

सरकार नहीं दे रही बढ़ावा

"शिक्षकों को वेतन नहीं मिलता है. साथ ही रोजगार की कोई व्यवस्था नहीं है. नतीजतन ना तो संस्कृत के तरफ विद्यार्थियों का झुकाव हो पा रहा है और ना ही अब संस्कृत के योग्य शिक्षक ही मिल पा रहे हैं. एक समय था जब संस्कृत की शिक्षा ग्रहण करना विद्यार्थी एक बड़ी उपलब्धि मानते थे. लेकिन अब उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए विद्यार्थियों में आकर्षण रहने के बावजूद पुस्तकों के अभाव की वजह से विद्यार्थी भटक रहे हैं. यहां तक कि संस्कृत विद्यालयों के पुस्तकालय में पड़े दुर्लभ ग्रंथ भी वाजिब रख रखाव में कमी के कारण दीमकों के हवाले हो गए हैं"-विजय सिंह, प्रधानाध्यापक

दयनीय हो चुकी है विद्यालयों की हालत

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रोजगारपरक शिक्षा की धुरी है संस्कृतसमाज में धार्मिक आयोजनों और कर्मकांडों में पुरोहित और ब्राह्मणों की उपयोगिता किसी से छुपी नहीं है. लिहाजा संस्कृत रोजगार परक शिक्षा का एक बेहतर विकल्प हो सकता है. बावजूद सरकार संस्कृत की शिक्षा को लेकर बेहतर व्यवस्था देने के मामले में उदासीन बनी हुई है. ऐसे में कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि सबसे प्राचीनतम भाषा रोजगारमुखी होते हुए भी वर्तमान समय में अपना अस्तित्व तलाश करने को मजबूर हैं.
Last Updated : Feb 2, 2021, 8:04 PM IST

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