मोतिहारी: देश आज आजादी के जश्न के साथ-साथ रक्षाबंधन का त्योहार भी मना रहा है. एक ओर जहां राष्ट्रीय पर्व स्वतंत्रता दिवस हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. वहीं, भाई और बहन के लिए सबसे बड़ा त्योहार रक्षाबंधन भी लोग धूमधाम से मना रहे हैं. इस दिन बहनें अपने भाईयों की कलाई पर राखी बांधती है. ये त्योहार भाई-बहन के अटूट रिश्ते, प्यार, त्याग और समर्पण को दर्शाता है.
भाइयों के कलाई पर बांधा रक्षासूत्र बहनों ने भाईयों की कलाई पर बांधा रक्षासूत्र
बहनों ने अपने भाई की कलाई पर राखी बांधकर अपने भाईयों की लंबी उम्र और सुख की कामना की और तिलक लगाकर आरती उतारकर अपने भाईयों को मुह मीठा कराया. वहीं, भाई अपनी बहन को बदले में उपहार देकर हमेशा रक्षा करने का वचन दिया.
रक्षाबंधन का महत्व
रक्षाबंधन हिन्दू धर्म के सभी बड़े त्योहारों में से एक है. यह पर्व भाई-बहन के अटूट बंधन और असीमित प्रेम का प्रतीक है. देश के कई हिस्सों में रक्षाबंधन को अलग-अलग तरीके से भी मनाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने के बाद सूर्य को अर्घ्य देने से सभी पापों का नाश हो जाता है. इस दिन पंडित और ब्राह्मण पुराने जनेऊ का त्याग कर नया जनेऊ पहनते हैं.
राखी बांधकर तिलक लगाते हुए पौराणिक और ऐतिहासिक मान्यताएं
रक्षाबंधन मनाने के कई धार्मिक और ऐतिहासिक कारण है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रक्षाबंधन को लेकर महाभारत काल में कृष्ण और द्रौपदी से जुड़ी हुई एक कहानी मिलती है. दन्तकथाओं के अनुसार जब कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया था, तब उनकी अंगुली में चोट आ गई थी. उस समय द्रौपदी ने अपनी साड़ी फाड़कर उनकी अंगुली पर बांध दिया था. यह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था और उसी समय भगवान कृष्ण ने द्रौपदी की हर विपदा में रक्षा करने का वचन दिया था और तभी से रक्षाबंधन का प्रचलन शुरू हो गया.
रक्षाबंधन मनाए जाने की ऐतिहासिक मान्यता
रक्षाबंधन मनाए जाने की कई ऐतिहासिक मान्यताएं भी हैं, जिनमें सबसे प्रचलित कथा के अनुसार जब हुमायूं चित्तौड़ पर आक्रमण करने के लिए आगे बढ़ रहा था. उसी समय चित्तौड़ की महाराणी ने हुमायूं को राखी भेजकर रक्षा का वचन लिया, कि वह उसकी रक्षा करें. जिसके बाद हुमायूं ने बाद में चितौड़ की रक्षा के लिए बहादुरशाह से युद्ध किया और उसके राज्य की रक्षा की.