वैशाली:रूस यूक्रेन जंग (Russia Ukraine war) में फंसे छात्रों को वापस देश लाने की कवायद तेज कर दी गई है.यूक्रेन से आए स्टूडेंट्स की आंखों के सामने आज भी तबाही का मंजर है. घर वालों को पाकर उन्हें नया जीवन मिला है.इसी क्रम में यूक्रेन से लौटे एक छात्र मृत्युंजय माधवन (Vaishali student returned from ukraine ) ने अपनी आपबीती बताई. मृत्युंजय ने बताया कि वह जहां वह पढ़ रहे थे वहां कुछ दूरी पर बमबारी हो रही थी. वहां से रोमानिया बॉर्डर तक पहुंचने में काफी परेशानी हुई.
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छात्र माधवन ने कहा कि किसी तरह से सभी छात्र रोमानिया बॉर्डर पहुंचे. रास्ते में काफी ठंड थी. बॉर्डर पर धक्का-मुक्की भी करनी पड़ी. बॉर्डर तक जाने के लिए तीन बस किए गए थे. जिसमें 150 बच्चे यूक्रेन के रोमानिया बॉर्डर के लिए निकले थे. जो डेढ़ सौ किलोमीटर की दूरी पर था. लेकिन बस वाले ने 20 किलोमीटर पहले ही उतार दिया. इसके बाद पैदल धक्का-मुक्की करते हुए आगे का सफर तय करना पड़ा. कहीं भी कोई सहायता नहीं मिली.रोमानिया एयरपोर्ट से हमें रिसीव कर दिल्ली लाया गया.
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"वहां हालात काफी खराब थे. हमें बोला गया कि रात में या कल सुबह निकल जाओ. हमारे सीनियर्स ने इवानो से रोमानिया बॉर्डर के लिए बस किया. बॉर्डर पर पहुंचने पर देखा कि बहुत लंबी लाइन लगी हुई थी. हमें लंबे समय तक लाइन में खड़े रहना पड़ा. रात को करीब 12 बजे हम सभी ने बॉर्डर क्रॉस किया. बॉर्डर से हम रोमानिया एयरपोर्ट पहुंचे जहां एंबेसी के लोग थे. लेकिन बॉर्डर पर कोई भी नहीं था. फिर फ्लाइट से दिल्ली पहुंचे. सब कुछ हमें खुद ही करना पड़ रहा था. किस्मत ने साथ दिया इसलिए वापस आ सके. सरकार ने कहा था कि बॉर्डर में रिसीव करेंगे लेकिन वहां कोई नहीं था. सिर्फ टिकट कराने के लिए सभी अधिकारी एयरपोर्ट पर बैठे हुए थे."-मृत्युंजय माधवन, छात्र
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वहीं मृत्युंजय माधवन के पिता सुदेश्वर दास ने बताया कि हम लोगों को काफी चिंता थी. हम लोग डर से बच्चे से बात भी कम करते थे कि कहीं उनका नेट पैक खत्म हो जाएगा तो आगे और परेशानी होगी. उन्होंने यह भी कहा कि उनका बेटा तो आ गया है लेकिन अन्य बच्चों के लिए अभी भी चिंता बनी हुई है. सरकार के द्वारा किए जा रहे कामकाज पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि प्रचार प्रसार ज्यादा है. सतह पर काम कम हो रहा है. लेकिन भारत सरकार से उम्मीद है कि वह यूक्रेन में फंसे लोगों को वापस ले आएंगे.