वैशालीःबिहार के वैशाली के महुआ में मनोकामना पूर्ण करने वाली शक्तिपीठ गोविंदपुर सिंघाड़ा में दशहरा के मौके पर भक्तों की खासी भीड़ उमड़ती है. मान्यता के मुताबिक यहां पांचवें दिन ही माता का पट खुल जाता है और पट खुलते ही पंचमी तिथि को दो बकरे की बली, मछली और 56 भोग लगाया जाता है. बताया जाता है कि इस दौरान स्थापित प्रतिमा की विधिवत नेत्र संस्कार होता है.
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दो बकरे की दी जाती है बलिःमूर्तिकार बैजू पंडित टीम द्वारा निर्मित प्रतिमा में चतुर्थी की मध्य रात्रि को यहां निर्मित छोटी-छोटी प्रतिमाओं के नेत्र संस्कार किए जाते है और मां दुर्गा का नेत्र संस्कार पंचमी के दिन किया जाता है, पट खोलना के बाद 56 प्रकार के व्यंजन के साथ मछली का प्रसाद एवं दो बकरे की बलि दी जाती है.
304 वर्षों से होती आ रही है पूजाःबताया जाता है कि शक्तिपीठ सिंघाड़ा गोविंदपुर में लगभग 304 वर्षों से पूजा अर्चना होती आ रही है. स्वर्गीय लीलकु सिंह को मां ने स्वप्न दिया था इसके बाद झोपड़ी में पूजा अर्चना प्रारम्भ हुई थी जो कुछ वर्षों बाद मिट्टी के खपरैल मंदिर में मां की पूजा अर्चना हुई, इसके बाद यहां अब भव्य मंदिर में पूजा अर्चना हो रही है.
शक्तिपीठ के बाहर सजी दुकानें इस तरह बनती है प्रतिमाःबरसों से चली आ रही विधान के अनुसार मां का प्रतिमा निर्माण के लिए भादो माह में श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन बांस काट कर लाया जाता है और चौथ चंद पर्व के दिन मंडप का प्रारूप तैयार किया जाता है. वही अनंत चतुर्दशी पर्व के दिन से प्रतिमा में मिट्टी लगाने का कार्य किया जाता है. प्रतिमान निर्माण का कार्य बैजू पंडित करते हैं प्रतिमा का निर्माण जैसे पहले होता था, आज भी उसी तरह से प्रतिमा बनती है.
मंडप में रहती है नौ देवी की प्रतिमाः मंडप में नौ देवी की प्रतिमा बनाई जाती है. प्रतिमा के ऊपरी हिस्से में ब्रह्मा विष्णु महेश मध्य में सरस्वती लक्ष्मी गणेश नीचे कार्तिक भस्मासुर तथा मध्य भाग में मां दुर्गा सुर्ख लाल रंग की भव्य प्रतिमा होती है. मां की मुख्य पूजा अर्चना कमलेश शास्त्री और मिथिलेश शास्त्री के नेतृत्व किया जाता है. शक्तिपीठ सिंघाड़ा गोविंदपुर स्थित मां के भव्य दरबार में पूजा अर्चना का काफी पुराना इतिहास है इसमें अब तक कोई भी बदलाव नहीं किया गया है.
शक्तिपीठ परिसर में मौजूद लोग सैकड़ों बकरों की दी जाती है बलिःमनोकामना सिद्धि और बलि प्रथा के रूप में इस स्थान की चर्चा कई जिलों के अलावा कई प्रदेशों में भी होती है. यही कारण है कि लोग यहां आकर मां के दरबार में अपना सिर झुकाते हैं. दशहरा के मौके पर यहां भव्य मेला लगता है और सैकड़ो बकरों की बलि भी दी जाती है. हजारों की संख्या में रोज लोग दर्शन करने आते हैं.