पटनाः कोरोना संक्रमण की रफ्तार ने इस बार सरकार की नींद उड़ा दी है. राजधानी पटना में रोजाना ढाई से तीन हजार कोरोना संक्रमित मिल रहे हैं और पूरे बिहार की बात करें तो आंकड़ा 15 हजार के आसपास रह रहा है. यह स्थिति तब है जब वैक्सीनेशन जारी है और लाखों लोगों को वैक्सीनेट किया भी जा चुका है.
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विशेषज्ञ भी कहते रहे हैं कि लॉकडाउन लगाने में सरकार ने देर कर दी. लिहाजा संक्रमण की रफ्तार तेजी से बढ़ी और स्वास्थ्य सेवाओं पर उसका जबरदस्त असर पड़ा है.
पिछले साल जब लॉकडाउन लगा था तो संक्रमण इतना फैला नहीं था. बिहार में तो गिनती के मरीज थे. लेकिन इस साल स्थिति पूरी तरह से बदली हुई है. कोरोना संक्रमण अपने चरम पर है और प्रतिदिन बड़ी संख्या में लोगों की मौत भी हो रही है.
पिछले साल 22 मार्च को बिहार में कोरोना संक्रमण का पहला केस मिला था और एक लाख संक्रमण पहुंचने में लगभग 5 महीने लगे थे. 17 अगस्त 2020 को राज्य में संक्रमित मरीजों की संख्या एक लाख पार हुई थी.
लेकिन इस बार स्थिति दूसरी है. 8 दिन में ही 1,04,547 कोरोना संक्रमित मिले हैं. 22 अप्रैल से 30 अप्रैल के बीच 1,04,547 संक्रमित मिले थे. 22 अप्रैल से 30 अप्रैल तक कुल संक्रमित की संख्या 4 लाख से अधिक हो गई और 8 मई तक कुल मरीजों की संख्या छह लाख के करीब पहुंच गयी है.
22 मार्च के बाद से अब तक बात करें तो तीन लाख से अधिक कोरोना संक्रमित मिल चुके हैं. इसके कारण ही बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है. सरकार की मुश्किलें बढ़ी हुई हैं. अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन के लिए हाहाकार मचा है. यही नहीं श्मशान घाट में भी लोगों को कई तरह की चुनौतियों से सामना करना पड़ रहा है.
पटना में कोरोना वैक्सीन के लिए कतार में खड़े लोग 1 मई से लगातार बिहार में कोरोना संक्रमित की संख्या 10,000 से ऊपर रही हैः
- 1 मई को 13789 मरीज मिले
- 2 मई को 13534 मरीज मिले
- 3 मई को 11407 मरीज मिले
- 4 मई को 14794 मरीज मिले
- 5 मई को 14836 मरीज मिले
- 6 मई को 15126 मरीज मिले
- 7 मई को 13466 मरीज मिले
- 8 मई को 12948 मरीज मिले
पिछले 3 सप्ताह की बात करें तो बिहार में हर सप्ताह एक लाख से अधिक कोरोना संक्रमित मिल रहे हैंः
- 22 मार्च से 22 अप्रैल के बीच 1,02,111 मरीज मिले
- 22 अप्रैल से 30 अप्रैल के बीच 1,04,547 मरीज मिले
- 30 अप्रैल से 8 मई के बीच 1,19,500 मरीज मिले
एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर विद्यार्थी विकास
एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर विद्यार्थी विकास ने कहा कि इस बार सरकार के लिए बड़ी चुनौती है. ऐसे में लॉकडाउन तो अभी लंबा चलेगा ही लेकिन सरकार को वैक्सीनेशन पर सबसे ज्यादा जोर देना चाहिए. जरूरत पड़े तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रयास करना चाहिए.'
वहीं, राजनीतिक विशेषज्ञ प्रोफेसर अजय झा के अनुसार ‘इस बार सरकार के लिए कठिन परिस्थिति है. सराकर को युद्ध स्तर पर सरकार को स्वास्थ्य सेवा सुधारने पर जोर देना चाहिए. इस बार लॉकडाउन तब लगा है जब बड़ी संख्या में लोग संक्रमित हो चुके हैं. बड़ी संख्या में लोग हॉस्पिटल और घरों में आइसोलेट हैं. जो कई तरह की किल्लतों का सामना कर रहे हैं.’
राजनीतिक विशेषज्ञ प्रो. अजय झा बता दें कि बिहार में लॉकडाउन का पहला फेज 15 मई तक है, लेकिन जितनी संख्या में कोरोना संक्रमित मिल रहे हैं और मौतें हो रही हैं, स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है. ऐसे में तय है कि लॉकडाउन अभी समाप्त नहीं होने वाला है. 18 वर्ष अधिक उम्र के लोगों का वैक्सीनेशन का काम शुरू हो गया है. लॉकडाउन के साथ वैक्सीनेशन का असर विशेषज्ञ भी कहते हैं कि आने वाले दिनों में दिखेगा.