सिवान:देशआजादी की 75वीं वर्षगांठ पर आजादी का अमृत महोत्सव (Azadi ka Amrit Mahotsav) मना रहा है. सभी देशवासी अपने स्वतंत्रता सेनानियों को याद कर रहे हैं, लेकिन सौभाग्य से आज भी कुछ स्वतंत्रता सेनानी हमारे बीच मौजूद हैं. उन्होंने इस देश को आजाद होते हुए देखा है. वह इस देश की 75 साल की गौरवशाली यात्रा के गवाह बने हैं. भारत को विकास के पथ पर बढ़ते हुए देखा है. दरअसल, भारत जब अंग्रेजों के हाथों गुलाम था, उस समय खबर पहुंचाने का कोई माध्यम नहीं था, तब लोक गायिकी ही एक ऐसा माध्यम था, जिससे भारतीय युवाओं में जोश भरने का काम किया जाता था. ऐसे ही एक स्वतंत्रता सेनानी है सिवान के जंगबहादुर सिंह (Freedom Fighter Jang Bahadur Singh), जिन्होंने अपनी गायिकी के माध्यम से लोगों में देशभक्ति की भावना को जगाया. इनकी उम्र 102 साल की हो चुकी है, लेकिन इनके गानों का जोश वही है. सुनेंगे तो खून उबाल मारने लगेगा. सिर्फ गाने में ही नहीं बल्कि कुश्ती में भी इनका जोड़ उस जमाने में नहीं था.
स्वतंत्रता सेनानी जंगबहादुर सिंह की कहानी: बिहार के सिवान जिले के रघुनाथपुर स्थित कौसर गांव में आज भी 102 साल के जंगबहादुर के गीत लोगों में देशभक्ति का जज्बा पैदा करते हैं. आजादी के पहले जंगबहादुर सिंह जब बलिया में देशभक्ति गीत गा रहे थे, उस वक्त ब्रिटिश शासनकाल था. तब अंग्रेजों को उनके ये गीत गाना पसंद नहीं था. ब्रिटिश प्रशासन ने उनके गाने पर प्रतिबंध लगा रखा था. लेकिन उन्होंने इसकी परवाह ना करके, वो स्वतंत्रता सेनानियों में अपने गीतों से जोश भरते रहे. पाबंदी के बावजूद जब जंग बहादुर ने अंग्रेजों के फरमान को अनसुना कर दिया तो उन्हें यूपी के बलिया जेल में दो दिनों तक बंद कर दिया गया. बाद में उन्हें छोड़ दिया गया.
102 साल की उम्र में भी नहीं हुआ जोश कम: जंग बहादुर आज भले 102 साल के हो गए हैं, लेकिन इस उम्र में भी पुरानी याद को ताजा कर के उनकी जवानी याद आ जाती है. मूछों पर ताव देते हुए आज भी वे देशभक्ति के गीत गाते हैं, जिसे सुनने के लिए गांव के लोग भी जुट जाते हैं. देशभक्ति का जुनून रखने वाले जंगबहादुर सिंह का जन्म 10 अक्टूबर, 1920 को सिवान के रघुनाथपुर के कौसर गांव में हुआ था. उनके पिता विशुन सिंह किसान थे.