सीवानः चित्तौड़ ऐसी जगह है जो अपनी वीरता के लिए जाना जाता है. राजस्थान के चित्तौड़ की कहानियां काफी प्रचलित हैं. जहां रानी पद्मावती ने अपने आत्मसम्मान के लिए सहेलियों के साथ जौहर किया था. वहीं सिवान जिले के अंदर प्रखंड स्थित चित्तौड़ गांव की कहानी भी किसी वीर गाथा से कम नहीं है. यहां के जवान रम्भु सिंह ने कारगिल युद्ध में मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राण को न्यौछावर कर दिया था.
सैनिकों ने लहराया था तिरंगा
ऑपरेशन विजय के तहत 60 दिनों तक चली जंग में बिहार रेजिमेंट के सैनिकों ने भी दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए थे. आज से ठीक 21 साल पहले 26 जुलाई को कारगिल फतह कर सैनिकों ने तिरंगा लहराया था. लेकिन कारगिल युद्ध मे शहीद जवानों के गांव आज तक मूलभूत सुविधाओं से दूर हैं. हम बात कर रहे हैं सिवान से लगभग 20 किलोमीटर दूर चितौड़ गांव की जहां के लाल रम्भु सिंह कारगिल युद्ध के दौरान देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गए.
जलजमाव की समस्या
शहीद जवान रम्भु सिंह का जन्म 16 मार्च 1972 में हुआ था. उन्होंने ऑपरेशन विजय में अहम भूमिका निभाई था. 20 जून 1999 में दुश्मनों से लड़ते हुए वे वीरगति को प्राप्त हो गए. शहीद के गांव में उनकी प्रतिमा लगा दी गयी और वहां के विद्यालय का नाम उनके नाम पर रख दिया गया. लेकिन गांव में सड़कें आज तक नहीं बन पाई हैं. लोगों को कच्ची सड़कों से आना जाना पड़ता है. साथ ही बरसात में यहां जलजमाव की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है. पानी शहीद रम्भु सिंह के घर मे भी घुस जाता है.