सिवान: जिले के सिसवन प्रखंड के भागर गांव में मौजूद निलहाकोठी की कहानी और अंग्रेजी हुकूमत की याद आज भी ताजा है. आज इस गांव में उस दौर के लोग तो नहीं हैं, लेकिन बुजुर्गों से सुनी हुई बातें इस गांव के लोग बताते हैं. जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल से आगे बढ़ उत्तर बिहार में प्रवेश किया था उसी क्रम में वो यहां आये थे. यहां उन्होंने किसानों से नील की खेती करवाई.
अंग्रेज यहां सरयू नदी के रास्ते पहुंचे थे. अंग्रेजों के यहां पहुंचने पर उनका भारी विरोध भी हुआ था, लेकिन उनके आगे किसी की एक न चली. कंपनी के नुमाइंदों ने धीरे-धीरे यहां अपना आधिपत्य जमा लिया. इसके बाद गांव के किसानों को नील की खेती करने के लिए मजबूर किया. नील की खेती करने वाले किसान पर अंग्रेज जुर्म ढाहते थे. वहीं, नील की ऊपज ज्यादा होने लगी तो अंग्रेजों ने भागर गांव में ही नील बनाने की भट्ठी तैयार कर दी. इसके लिए करीब 10 कट्ठा में एक कोठी तैयार की गई. यहीं से तैयार की गई नील को मालवाहक जहाज द्वारा बंगाल भेजा जाने लगा.