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दरौंदा में त्रिकोणीय मुकाबला: अजय, कर्णजीत या फिर उमेश के सिर बंधेगा जीत का सेहरा

दरौंदा विधानसभा सीट को 2009 के परिसीमन के बाद रघुनाथपुर सीट से अलग करके बनाया गया है. दरौंदा विधानसभा के महज 10 साल के जीवन काल में दूसरी बार उपचुनाव होने जा रहा है.

सिवान

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Published : Oct 20, 2019, 12:04 AM IST

सिवान: सिवान की धरती कई मायनों में ऐतिहासिक है. देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की ये जन्मस्थली भी है. वहीं, पूरे देश में अपराध को लेकर भी ये जिला काफी सुर्खियों में रहा है. बीते लोकसभा चुनाव में दरौंदा की विधायक कविता देवी ने जदयू की टिकट पर जीत हासिल की थी. इसकी वजह से दरौंदा विधानसभा सीट पर एक बार फिर से चुनावी जंग छिड़ गया है.

बिहार में 5 विधानसभा और 1 लोकसभा सीट के लिए 21 अक्टूबर को वोटिंग है, लिहाजा एनडीए और महागठबंधन की ओर से चुनाव प्रचार आखिरी दौर में है. एनडीए ने सांसद कविता देवी के पति बाहुबली अजय सिंह को जदयू के टिकट से मैदान में उतारा है. तो, राजद ने उमेश सिंह पर दांव खेला है. वहीं, बीजेपी के जिला उपाध्यक्ष कर्णजीत सिंह ने निर्दलीय ताल ठोककर जेडीयू की परेशानी बढ़ा दी है.

दरौंदा विधानसभा चुनाव पर एक रिपोर्ट

10 साल में दूसरी बार उपचुनाव
दरौंदा विधानसभा सीट को 2009 के परिसीमन के बाद रघुनाथपुर सीट से अलग करके बनाया गया है. दरौंदा विधानसभा के महज 10 साल के जीवन काल में दूसरी बार उपचुनाव होने जा रहा है. इसका निर्णय 9 पंचायतों के वोटर तय करेंगे. बाहुबली नेता अजय सिंह का इस सीट पर शुरू से ही दबादबा रहा है. यहां से अभी तक अजय सिंह की मां जगमातो देवी और उनकी पत्नी कविता देवी ही विधायक बनी हैं.

जदयू प्रत्याशी अजय सिंह

बदल गया है समीकरण
इस बार यहां से राजनीतिक समीकरण बदलता दिख रहा है. जदयू प्रत्याशी अजय सिंह की मुश्किलें बढ़ती दिखाई दे रही है. बीजेपी के जिला उपाध्यक्ष कर्णजीत सिंह ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला कर एनडीए वोट में सेंधमारी की कोशिश में हैं. इसके साथ ही बीजेपी के पूर्व सांसद ओम प्रकाश यादव भी कर्णजीत सिंह के समर्थन में उतर गए हैं. इससे फिलहाल राजद प्रत्याशी उमेश सिंह को ही फायदा मिलता दिख रहा है. परिणाम जो भी हो लेकिन जीत का दावा सभी कर रहे हैं.

निर्दलीय प्रत्याशी कर्णजीत सिंह

चुनाव तय करेगा दरौंदा का भविष्य
हालांकि अजय सिंह को ही दरौंदा विधानसभा क्षेत्र का कद्दावर नेता माना जाता है. अजय सिंह को नरेंद्र मोदी और सुशासन बाबू के चेहरे का फायदा मिल सकता है. लेकिन अब देखना ये होगा कि इस बार के उपचुनाव में अजय सिंह अपनी सियासी विरासत बचाते हैं, या उमेश सिंह राजद की सोशल इंजीनियरिंग करने में सफल हो पाते हैं. या फिर निर्दलीय कर्णजीत सिंह डार्क हॉर्स साबित होते हैं.

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