सीतामढ़ी:जिले में सरकारी बस पड़ाव की हालत बेहद खराब है. रेलवे की जमीन पर 1959 से संचालित इस बस स्टैंड में पदाधिकारियों और विभागीय उदासीनता के कारण यात्री परेशान हो रहे हैं. यहां के हालात बद से बदतर है. लिहाजा, प्रशासन मौन है.
सीतामढ़ी का सरकारी बस पड़ाव वर्षों से रेलवे की जमीन पर चल रहा है. यह भूमि रेलवे से लीज पर ली गई है और यह लीज 2019 में समाप्त हो जायेगी. इसके बाद बिहार राज्य पथ परिवहन निगम के सामने बसों का संचालन करना बेहद मुश्किल भरा होगा. अभी बस पड़ाव रेलवे की करीब 1 एकड़ भूमि में चल रहा है. यहां यात्री सुविधाओं का घोर अभाव है. बस स्टैंड में यात्रियों के लिये ना तो बैठने जगह है और ना ही पीने के लिए पेयजल. वहीं,शौचालय की तो बात ही ना कीजिए.
कर्मचारियों भी परेशान
बुनियादी सुविधाओं के अभाव में यहां यात्री हो या कर्मी सभी को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. वेटिंग रूम खंडहर में तब्दील हो चुका है. इसलिये बरसात. ठंडी और गर्मी के मौसम में यात्रियों को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. सड़क से काफी नीच सतह होने के कारण बारिश के मौसम में यहां जलजमाव की स्थिति बनी रहती है. विभाग की अपनी भूमि तालाब में तब्दील हो चुकी है.
डिपो की जमीन बनी तालाब
बस स्टैंड को चलाने के लिये विभाग ने वर्षों पूर्व तीन एकड़ जमीन बाजार समिति के निकट खरीदी थी. इसके कुछ हिस्से पर डिपो संचालित है. बाकी की भूमि तालाब में तब्दील हो गयी है. जबकि स्टैंड निर्माण के लिये तत्कालीन जिलाधिकारी की पहल पर विभाग को 2 बार प्रपोजल भेजा जा चुका है. लेकिन उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है.
यात्रियों की लगती है भीड़
प्रतिदिन यहां से 6-7 हजार यात्री यात्रा करते हैं. बिहार राज्य पथ परिवहन निगम के पास अपनी 15 और 50 अंडरटेकिंग बसे हैं और इससे निगम को भाड़े से 4 लाख से अधिक की आमदनी रोज होती है. यहां से सीतामढ़ी से पटना, मुज्जफरपुर, बेलपरिहर, बैरगिनिया सहित अन्य जगहों के लिये प्रस्थान करती हैं. अधिकारी और विभागीय उदासीनता का दंश झेल रहे इस बस पड़ाव को किसी रहनुमा का इंतजार है, जो इसे समय पर संजीवनी बूटी देकर इसके अस्तित्व को जिंदा कर सके.