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बंद होने के कगार पर रीगा चीनी मिल, नहीं मिल रही सरकार से कोई मदद

चीनी मिल के प्रबंधक शशि गुप्ता ने बताया कि राज्य और केंद्र सरकार के पास मील का करीब 20 करोड़ रुपया बकाया है, जिसका भुगतान नहीं किया जा रहा. साथ ही चीनी बिक्री पर मिलने वाला सब्सिडी भी नहीं मिल पा रहा. ऐसे हालात में चीनी मिल को चलाना बेहद मुश्किल हो चुका है.

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Published : Jun 12, 2020, 6:29 PM IST

सीतामढ़ी:1950 से संचालित जिले का एक मात्र उद्योग रीगा चीनी मिल आर्थिक विसंगतियों के कारण बंद होने के कगार पर है. इसका सीधा असर 3 जिलों के करीब 35,000 गन्ना किसान और 600 कर्मियों के जीवन पर पड़ेगा. चीनी मिल के बंद हो जाने पर किसान और कर्मी दोनों भुखमरी के शिकार हो जाएंगे. इस चीनी मील को चालू रखने के लिए सरकारी सहायता और मदद की दरकार है. जो नहीं मिल पा रही है. लिहाजा, मिल के संचालक ओमप्रकाश धानुका ने निराशा जाहिर करते हुए बताया कि चीनी मिल को चला पाना अब मेरे बस की बात नहीं है.

गन्ना किसानों का बताना है कि चीनी मिल को गन्ना आपूर्ति करने के लिए 3 जिलों के हजारों किसानों ने करीब 20,000 एकड़ में उत्तम और सामान्य प्रभेद के गन्ने लगाए हुए हैं. अगर मिल बंद कर दिया जाएगा तो सभी किसान इस लगाए गए गन्ने को लेकर कहां जाएंगे और इसकी भरपाई कैसे होगी.

रीगा चीनी मिल

नहीं मिल रही कोई मदद
वहीं, चीनी मिल मजदूर यूनियन के सचिव अशोक कुमार ने बताया कि प्रबंधन द्वारा मिल को चलाने में उदासीनता बरती जा रही है. दूसरी तरफ सरकार की तरफ से भी इस मिल को कोई आर्थिक मदद नहीं मिल रही है. ऐसे हालात में अगर यह चीनी मिल बंद हो जाएगा तो सैकड़ों कर्मियों के सामने भुखमरी की समस्या उत्पन्न हो जाएगी. कर्मियों के घरों में चूल्हे नहीं जल पाएंगे, बच्चों की पढ़ाई, लड़कियों की शादी, बीमार लोगों का इलाज सभी काम बाधित हो जाएंगे. इसलिए सभी कर्मी सरकार और मिल प्रबंधन से मांग करते हैं कि इस आर्थिक विसंगति का समाधान निकाल कर मिल को संचालित रखा जाए.

किसान और कर्मियों का बकाया
चीनी मिल के ऊपर गन्ना आपूर्ति करने वाले किसानों का करीब 85 करोड़ और कर्मियों का 2 महीनों का वेतन सहित अन्य मदों की राशि करीब तीन करोड़ रुपये बकाया है. जिसका भुगतान नहीं किया जा सका है. वहीं, मजदूर यूनियन और प्रबंधन के बीच जारी घमासान को लेकर चीनी की बिक्री बाधित है. इस कारण ना तो किसानों का बकाया भुगतान हो पा रहा है और ना ही मिल प्रबंधन को पैसा मिल पा रहा है.

1950 में हुई थी संचालित

रीगा चीनी मिल के साथ भेद भाव
मिल के संचालक ओमप्रकाश धानुका ने ईटीवी भारत संवाददाता को बताया कि राज्य और केंद्र सरकार इस मिल को किसी प्रकार से आर्थिक मदद नहीं दे रही है. लिहाजा अब इसका संचालन करना मुश्किल हो चुका है. उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार रीगा चीनी मिल के साथ भेदभाव कर रही है. देश की बड़ी चीनी मिलों को आर्थिक सहायता दी जा रही है, लेकिन कमजोर चीनी मिलों को सरकार किसी तरह की मदद नहीं कर रही है. इसलिए चीनी मिल को चला पाना बेहद मुश्किल हो गया है. चीनी मिल के महाप्रबंधक शशि गुप्ता ने बताया कि लगातार कई वर्षों से प्राकृतिक आपदा झेलने और लक्ष्य से काफी कम उत्पादन होने के कारण मील की आर्थिक स्थिति बेहद खराब हो चुकी है. जब तक सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिलकी है तब तक इसे चला पाना संभव नहीं है.

40 करोड़ की दरकार
चीनी मिल के संचालक और महाप्रबंधक का बताना है कि चीनी मिल को संचालित रखने के लिए किसानों और कर्मियों के बकाए का भुगतान करना बेहद जरूरी है. इसके लिए मिल प्रबंधन सरकार से 40 करोड़ रुपये सॉफ्ट लोन की मांग कर रही है. लेकिन, सरकार की ओर से सॉफ्ट लोन नहीं मिल रहा है. लिहाजा, पैसे के अभाव में मील का संचालन करना मुश्किल हो गया है.

मिल बंद होने से हजारों किसानों को होगी परेशानी
लक्ष्य से कम उत्पादनमहाप्रबंधक शशि गुप्ता ने बताया कि विगत कई वर्षों से प्राकृतिक आपदा के कारण रीगा चीनी मिल को पर्याप्त गन्ना नहीं मिल पा रहा है. इसलिए लक्ष्य से काफी कम गन्ने की पेराई की जाती रही है. लक्ष्य हासिल नहीं हो पाने के कारण चीनी मिल की आमदनी भी कम हो गई है. पिराई सत्र 2019-20 में 50 से 60 लाख क्विंटल गन्ना पेराई का लक्ष्य था. लेकिन बाढ़ के कारण केवल 20 लाख क्विंटल गन्ना चीनी मिल को मिल पाया. जिस गन्ने से केवल 1 लाख 87 हजार क्विंटल चीनी तैयार हुआ, जिसकी बिक्री से मिलने वाले पैसे से बकाए का भुगतान कर पाना बेहद मुश्किल है.

संचालक ओमप्रकाश धानुका और चीनी मिल के महाप्रबंधक शशि गुप्ता ने बताया कि चीनी मिल को चलाने के लिए ओपी धानुका ने कोलकाता में बना अपना मकान बेच डाला. साथ ही दिल्ली का मकान नीलामी के कगार पर है. अब संचालक के पास कोई ऐसी संपत्ति नहीं बची है जिसे बेचकर इस मिल को चलाया जा सके. महाप्रबंधक ने बताया कि रीगा चीनी मिल में 600 कर्मी कार्यरत हैं, जिन्हें पेराई सत्र के दौरान प्रति माह 1 करोड़ 40 लाख रुपये वेतन के रूप में भुगतान करना पड़ता है. वहीं, ऑफ सीजन में वेतन के मद में प्रति माह करीब 70 लाख रुपया भुगतान किया जाता है. लेकिन आर्थिक विसंगतियों के कारण कर्मियों का वेतन भी भुगतान नहीं हो पा रहा.

ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट
जन्मदिन पर मिला था उपहारचीनी मिल के संचालक ओमप्रकाश धानुका ने बताया कि केंद्र और राज्य सरकार अगर आर्थिक मदद नहीं करती है तो ऐसे हालात में चीनी मिल की मशीनरी बेचकर किसानों के बकाए राशि का भुगतान कर देंगे. लेकिन किसानों को आर्थिक क्षति नहीं होने देंगे. इस चीनी मिल को मेरे पिता ने अंग्रेजों से खरीद कर मेरे जन्मदिन पर उपहार स्वरूप दिया था. इसलिए मैं इस चीनी मिल को एक बच्चे की तरह पाल पोस कर इसे जीवित रखने का प्रयास करता आ रहा हूं. लेकिन अब मेरी आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी नहीं है कि मैं चीनी मिल का संचालन कर सकूं. इस चीनी मिल से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से करीब 1 लाख लोग जुड़े हैं, जिनका जीवन इससे चलता है. इसलिए मैं चाहता हूं कि अगर सरकार मदद नहीं दे रही है तो किसान कॉपरेटिव बनाकर इसका संचालन करें और इसे बंद होने से बचा लें.

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