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दीपावली और छठ पर्व पर कमाई की आस, दो साल से भुखमरी की कगार पहुंचे कुम्हार

दूसरे के घरों को रोशन करने वाले कुम्हारे के खुद के जिंदगी में अंधेरा है. सही दामों में बाजारों में नहीं बिक रहे हैं मिट्टी के बर्तन जिससे उनकी आर्थिक स्थिति जैसे पहले थी वैसी ही अभी भी है. पढ़िए पूरी रिपोर्ट

कुम्हार भुखमरी के कगार पर
कुम्हार भुखमरी के कगार पर

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Published : Oct 29, 2021, 6:00 PM IST

सीतामढ़ी: बिहार के सीतामढ़ी जिले में दीपावली (Diwali) में दूसरे के घरों को मिट्टी के दीए (Earthen Lamps) से जगमग कर रोशन करने वाले कुम्हारों (Potters) की स्थिति अब तक नहीं बदल पाई है. अब भी कुम्हारों का परिवार 2 जून की रोटी के लिए कड़ी मशक्कत करता है. उनके मिट्टी के बर्तन बाजारों (Markets) में सही दाम में नहीं बिकते हैं जिसके कारण उनके दशा और दिशा अब तक नहीं बदल पाई है.

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केंद्र सरकार कुम्हारों की सहायता कर रही है फिर भी उनकी स्थति में कोई सुधार नहीं हो रहा है. मोहम्मद सईद ने कहा कि- 'केंद्र सरकार की तरफ से सभी कुम्हारों को सहायता के रूप में इलेक्ट्रिक मशीन दी जा रही है ताकि मिट्टी का बर्तन बेहतर तरीके से और जल्द ही तैयार किया जा सके. सरकार कुछ और सहायता करती और कुम्हारों को अनुदान देती. मिट्टी के बर्तनों के सही दाम बाजारों में मिलता तो इससे कुम्हारों के जीवन में सुधार आता. अभी भी कई कुम्हार भुखमरी के कगार पर है इसका कारण यह है कि कड़ी मशक्कत के बाद भी उनके मिट्टी के बर्तन का सही दाम बाजार में नहीं मिल रहा है.'

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कुम्हार भदई का कहना है कि- 'वह और उनका परिवार कड़ी मशक्कत कर मिट्टी के बर्तन, दीए बनाता है लेकिन जब वह उसे बाजार में बेचने जाता हैं तो उसे उसके मेहनत के अनुसार उसका दाम नहीं मिल पाता जिसके कारण उनका आर्थिक स्थिति जस का तस है. केंद्र सरकार के माध्यम से सहायता के रूप में कुम्हारों को मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए सहायता के रूप में इलेक्ट्रिक मशीन दी गई लेकिन वह मशीन भी उन्हें अब तक नहीं मिल पाई है.'

बता दें कि दीपावली (Diwali) को रोशनी और दीयों का त्यौहार कहा जाता है. इस दिन हर तरफ दीये, कैंडल और रंग-बिरंगी लाइटों की जगमगाहट देखने को मिलती है. ऐसे में हर साल की तरह इस बार भी लोग मिट्टी के दीयों (Earthen Lamps) को तरजीह दे रहे हैं. अमीर हो या गरीब कार्तिक मास के अमावस की रात में इससे सबों का घर दीयों से रोशन होता है.

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दीपावली प्रकाश का पर्व है. इस पावन पर्व पर प्राचीन काल से ही दीप जलाए जाते हैं. वहीं, इस बार दीपावली को पूरी तरह से स्वदेशी बनाने की तैयारी की जा रही है. दीये से लेकर पटाखों तक, सब कुछ स्वदेशी रहने वाला है. बिहार में दीपावली के त्योहार को लेकर घर को रोशन करने के लिए मिट्टी के बने दीये की भारी मांग देखी जा रही है. हालांकि, दीपावली का पर्व निकट आते ही कुम्हार एक बार फिर से नई उम्मीदों के साथ दीये बनाने के काम में जुट गए हैं.

बता दें कि दीपावली जैसे-जैसे नजदीक आ रही है. वैसे-वैसे कुम्हार अपने चाक को रफ्तार देने का काम कर रहे हैं. दीपों के पर्व दीपावली को लेकर बड़ी संख्या में कुछ कुम्हारों के परिवार मिट्टी के दीय बनाने के कार्य में जुटे हुए नजर आ रहे हैं. ऐसे में कुछ पुरानी पीढ़ी के लोग ही इस परंपरागत रोजगार को बचाए हुए हैं.

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हालांकि, चाइनीज बाजार के कारण धीरे-धीरे लोगों में मिट्टी के दीयों से सुरुचि घटती जा रही है. वहीं कुम्हारों के बनाए गए मिट्टी के बर्तन, दीये से दूसरों के घर रोशन होते हैं लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति में कोई सुधार नहीं हो रहा है. जैसे पहले उनकी आमदनी होती थी वही अभी भी है. महंगाई चरम पर है लेकिन कमाई जीरो है. इसलिए इनको भूखमरी का सामना करना पड़ रहा है. ये सीतामढ़ी के कुम्हारों का हाल नहीं है. कमोबेश राज्य के सभी जिलों के कुम्हारों का हाल यही है.

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