सीतामढ़ी: बिहार के सीतामढ़ी जिले में दीपावली (Diwali) में दूसरे के घरों को मिट्टी के दीए (Earthen Lamps) से जगमग कर रोशन करने वाले कुम्हारों (Potters) की स्थिति अब तक नहीं बदल पाई है. अब भी कुम्हारों का परिवार 2 जून की रोटी के लिए कड़ी मशक्कत करता है. उनके मिट्टी के बर्तन बाजारों (Markets) में सही दाम में नहीं बिकते हैं जिसके कारण उनके दशा और दिशा अब तक नहीं बदल पाई है.
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केंद्र सरकार कुम्हारों की सहायता कर रही है फिर भी उनकी स्थति में कोई सुधार नहीं हो रहा है. मोहम्मद सईद ने कहा कि- 'केंद्र सरकार की तरफ से सभी कुम्हारों को सहायता के रूप में इलेक्ट्रिक मशीन दी जा रही है ताकि मिट्टी का बर्तन बेहतर तरीके से और जल्द ही तैयार किया जा सके. सरकार कुछ और सहायता करती और कुम्हारों को अनुदान देती. मिट्टी के बर्तनों के सही दाम बाजारों में मिलता तो इससे कुम्हारों के जीवन में सुधार आता. अभी भी कई कुम्हार भुखमरी के कगार पर है इसका कारण यह है कि कड़ी मशक्कत के बाद भी उनके मिट्टी के बर्तन का सही दाम बाजार में नहीं मिल रहा है.'
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कुम्हार भदई का कहना है कि- 'वह और उनका परिवार कड़ी मशक्कत कर मिट्टी के बर्तन, दीए बनाता है लेकिन जब वह उसे बाजार में बेचने जाता हैं तो उसे उसके मेहनत के अनुसार उसका दाम नहीं मिल पाता जिसके कारण उनका आर्थिक स्थिति जस का तस है. केंद्र सरकार के माध्यम से सहायता के रूप में कुम्हारों को मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए सहायता के रूप में इलेक्ट्रिक मशीन दी गई लेकिन वह मशीन भी उन्हें अब तक नहीं मिल पाई है.'
बता दें कि दीपावली (Diwali) को रोशनी और दीयों का त्यौहार कहा जाता है. इस दिन हर तरफ दीये, कैंडल और रंग-बिरंगी लाइटों की जगमगाहट देखने को मिलती है. ऐसे में हर साल की तरह इस बार भी लोग मिट्टी के दीयों (Earthen Lamps) को तरजीह दे रहे हैं. अमीर हो या गरीब कार्तिक मास के अमावस की रात में इससे सबों का घर दीयों से रोशन होता है.
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