सीतामढ़ी: चुनावी उठापटक के बाद डुमरा प्रखंड के परोहा पंचायत के सिमरा गांव से गंगा-जमुनी तहजीब की सुखद तस्वीर सामने आई है. दरअसल, यहां हिंदू लोग मुस्लिम समुदाय के द्वारा बनाए गए मिट्टी के बर्तनों में मां लक्ष्मी को भोग लगाते हैं. इसके अलावे हिंदू आस्था का महापर्व छठ में भी मुस्लिम समुदाय के द्वारा बनाए गए बर्तनों का उपयोग करते हैं.
आर्थिक तंगी का दंश झेल रहे कारीगर
डुमरा प्रखंड के सिमरा गांव में कई मुस्लिम कारीगर मिट्टी के बर्तन का निर्माण करते हैं. कारीगरों का कहना है कि उनके पूर्वज भी मिट्टी के बर्तन से अपने और अपने परिवार का भरण पोषण करते थे. पहले तो रोटी-दाल की व्यवस्था हो जा रही थी. लेकिन वर्तमान में हालात यह है कि हाड़ तोड़ मेहनत के बाद भी इतना पैसा जमा नहीं होता की बच्चों को दोनों समय की रोटी की व्यवस्था हो सके. चाक के कारीगरों को मजदूरी करने की मजबूरी बन गई है. मिट्टी के बर्तन से उनके परिवार का गुजर-बसर पीढ़ियों से चलता चला आ रहा था. अब मिट्टी के बर्तनों की मांग घट गई है. त्यौहारों पर होने वाली बिक्री भी समाप्त होती जा रही है. कुम्हारों का कहना है कि चाइनीज लाइटों और खिलौने के कारण व्यवसाय पर खासा असर पड़ा है.
चाइनीज झालरों से करोबार पर असर
कुम्हार के चाक से बने खास दीपक दीपावली में चार चांद लगाते हैं. लेकिन बदलती जीवनशैली और आधुनिक परिवेश में मिट्टी को आकार देने वाले कुम्हारों को उपेक्षा का दंश झेलना पड़ रहा है. बाजारों में चाइनीज झालरों की धमक मिट्टी के बने दीपक की रोशनी को फीका कर रही है. चाइनीज झालरों की मांग शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक बढ़ती जा रही है.
पुश्तैनी धंधा छोड़ने पर मजबूर कुम्हार
बता दें कि दो जून की रोटी के लिए कड़ी मेहनत करने वाले कुम्हार का परिवार महीनों लगा रहता है. इसके बावजूद न तो उसे वाजिब दाम मिलता है और ना ही खरीददार. दूसरी तरफ चाइनीज दीये, मोमबत्ती और रंग-बिरंगे लाइट दीपावली के त्यौहार टिमटिमाते नजर आते हैं. आलम यह है कि उचित दाम नहीं मिलने से कुम्हार अपनी पुश्तैनी व्यवसाय छोड़ने को मजबूर है. क्योंकि इससे उनके परिवार का गुजर-बसर तक मुश्किल हो गया है.