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जब किताब थामने वाले हाथ कुदाल थामने को मजबूर, सफेद वर्दी का ही है सारा कसूर?

देश में बाल श्रम को रोकने के लिए कानून बनाए गए हैं. इसके लिए सख्त सजा का भी प्रावधान है. इन सबके बावजूद जिले में यह काम धड़ल्ले से किया जा रहा है. वो भी निजी तौर पर नहीं बल्कि तटबंध मरम्मती जैसे प्रशासनिक काम में.

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Published : Jul 9, 2020, 5:09 PM IST

बाल श्रम
बाल श्रम

सीतामढ़ी: सीतामढ़ी में संवेदक की ओर से बाल श्रम निषेध अधिनियम 1986 का खुलेआम उल्लंघन किया जा रहा है. बागमती अवर प्रमंडल के पदाधिकारी और संवेदक की मिलीभगत से छोटे मासूमों का शारीरिक शोषण किया जा रहा है ताकि कम पैसों में काम निपटा लिया जाए.

काम करने बैठे बच्चे

श्रमिकों में नाराजगी

इसको लेकर दूसरे प्रदेशों से लौटे अप्रवासी श्रमिकों में नाराजगी और आक्रोश है. स्थानीय विजय पासवान का आरोप है कि छोटे बच्चों को कम राशि देकर काम करवाया जा रहा है और युवा मजदूर रोजगार की तलाश में इधर-उधर भटक रहे हैं. संवेदक छोटे बच्चों को कम पैसे देकर अधिक से अधिक सरकारी राशि डकार रहा है. लोगों ने कहा कि ऐसे संवेदक के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए.

संवेदक पर आरोप

वहीं, दूसरी तरफ यह भी आरोप है कि संवेदक बोरे में सरकार की निर्धारित की गई मात्रा से काफी कम मिट्टी की भराई करवा रहा है. तटबंध मरम्मती कार्य में जुटे बिगन पासवान ने बताया कि बच्चों के परिजनों की मजबूरी का फायदा उठाकर अपना मुनाफा कमाया जा रहा है.

काम करते बच्चे

गलतियों पर पर्दा!

इस संबंध में पूछे जाने पर बागमती अवर प्रमंडल के एसडीओ अजय कुमार दोषी संवेदक पर कार्रवाई करने की बजाय गलतियों पर पर्दा डालते नजर आए. उन्होंने कहा कि नियमों के अनुसार ही मिट्टी की भराई की जा रही है. वहीं बाल मजदूरी की खबर पर कार्रवाई की जाएगी.

'कथनी और करनी में अंतर'

लेकिन एसडीओ की कथनी और करनी में अंतर देखा गया. बागमती अवर प्रमंडल के एसडीओ और सहायक अभियंता द्वारा प्रतिदिन कार्यों की समीक्षा की जाती है. इसके बावजूद इस तरह की घपलेबाजी और उल्लंघन पर रोक न लगाना एक तरह की मिलीभत को इंगित करता है.

तटबंध मरम्मती का कार्य

अंचलाधिकारी ने जताई नाराजगी

वहीं, स्थानीय अंचलाधिकारी अरविंद प्रताप शाही ने नाराजगी व्यक्त करते हुए बताया कि सिर्फ संवेदक ही नहीं बल्कि विभागीय पदाधिकारी भी दोषी हैं. इसकी शिकायत अनुमंडल पदाधिकारी और जिला अधिकारी से की जाएगी ताकि दोषियों पर कार्रवाई हो सके.

ग्रामीणों को भुगतना पड़ सकता है खामियाजा

बता दें कि डीएम ने बाढ़ पूर्व तैयारी को लेकर जिले के सभी तटबंधो की मरम्मत और साफ-सफाई का काम जल्द पूरा करने का आदेश दिया है. वहीं, पदाधिकारी और संवेदक की मिलीभगत से आपदा की इस घड़ी में इस तरह लूट-खसोट जारी रही तो इसका सीधा खामियाजा ग्रामीणों को भुगतना होगा.

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जहां गरीबी से गरीब है गरीबी

कोरोना के इस मुसीबत भरे दौर ने लोगों को निहायती बुरे दिन दिखाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है. गरीबी और भूख सभी सीमाओं को तोड़ रही है. कुछ चुनिंदा लोगों को इसका भरपूर फायदा उठाने का मौका मिल रहा है. देश भर इस तरह की खबरें सामने आ रही हैं जहां या बच्चों से या तो बाल मजदूरी करवाई जा रही है या बच्चियों से फायदा उठाया जा रहा है. वहीं अभिभावक भी मजबूरी में अपने बच्चों को काम पर भेजने के लिए विवश हैं.

सरकार के आगे बड़ी चुनौती

प्रवासियों की परेशानी हर कोई समझता है न यह किसी से छिपी है न इसे उजागर करने की जरूरत है. सरकार भी नई उद्योग नीति का राग अलाप रही है. इन्हें रोगजार मुहैया कराने की बात तो की जा रही है लेकिन कई जगहों पर काम देने के बाद भी हालात पूरी तरह से सुधर नहीं सके हैं. लाखों के तबके को परेशानी के इस दलदल से बाहर निकालना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है. ऐसे में सवाल उठता है इन सबके लिए कौन जिम्मेदार है, जिसका शायद कोई जवाब नहीं.

ये है सजा

बता दें कि बाल श्रम कानून के तहत किसी भी काम के लिए 14 साल से कम उम्र के बच्चे को नियुक्त करने वाले व्यक्ति को दो साल तक की कैद की सजा और उस पर 50 हजार रुपये का अधिकतम जुर्माना लगने का प्रावधान है. लेकिन इस कठोर नियम के लागू होने के बाद भी दुकानदार और फैक्ट्ररी जैसी तमाम जगहों पर बालश्रम पूरी तरह से नहीं रूक पा रहा है.

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