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लॉकडाउन में गई नौकरी तो रामराघव ने आपदा को बनाया अवसर, आत्मनिर्भर बनकर देने लगे रोजगार - ईटीवी भारत

कोरोनाकाल में लॉकडाउन (Lockdown in Corona Period) के चलते कई लोग बेरोजगार हो गए. इस दौरान लोगों की दयनीय दशा देखकर शेखपुरा के रामराघव कुमार ने यहां टेक्सटाइल कंपनी (Textile Company) स्थापित करने की सोची और गांव के लोगों को आत्मनिर्भर बनाते हुए रोजगारदाता बन गए. पढ़ें पूरी खबर..

शेखपुरा के रामराघव
शेखपुरा के रामराघव

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Published : Dec 10, 2021, 6:00 AM IST

शेखपुरा: बिहार के शेखपुरा जिले से मात्र दस किलोमीटर दूर स्थित मेंहूंस गांव है. जहां की पहचान मां माहेश्वरी मंदिर और एसएस कॉलेज है. जिले में मेंहूंस के नक्शे में एक और नाम जुड़ गया है और वो है टेक्सटाइल कंपनी सासा कलेक्शन (Textile Company Sasa Collection Shiekhpura). जो धीरे-धीरे अपनी एक अलग पहचान बना चुका है. जिसमें बने रेडीमेड कपड़े देश के विभिन्न प्रदेशों सहित विदेशों में भी एक्सपोर्ट किये जा रहे हैं. सासा कलेक्शन कंपनी बनाने के पीछे का उद्देश्य बहुत ही काबिले तारीफ है.

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जहां लॉकडाउन के समय देश के लाखों शिक्षित युवा अपनी नौकरी गंवाकर घर बैठ गए. उस लॉकडाउन में ही मेंहूंस के टेक्सटाइल इंजीनियर रामराघव कुमार ने अपने गांव के गरीब लोगों को रोजगार देने के उद्देश्य से मेंहूंस में ही अपनी टेक्सटाइल कंपनी खोलने का निर्णय लिया. उन्होंने लॉकडाउन के दौरान देखा कि गांव में गरीब तबके के लोग काफी दयनीय स्थिति में जी रहे हैं. आत्मनिर्भर भारत के तहत गांव की दशा को सुधारने की दिशा में उन्होंने प्रयास करना शुरू कर दिया.

देखें रिपोर्ट

आपदा को अवसर में बदलते हुए सासा कलेक्शन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की शुरुआत की. शेखपुरा के रामराघव कुमार (Ramraghav of Sheikhpura) ने महिला सशक्तिकरण का सटीक उदाहरण पेश करते हुए न सिर्फ महिलाओं को अपनी कंपनी में रोजगार दिया, बल्कि इन महिलाओं को आधारशिला फाउंडेशन के तहत सरस्वती योगा केंद्र मेंहूंस में प्रशिक्षण भी दिलाया. वर्तमान में सासा कलेक्शन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में 16 महिलाएं और 7 पुरुषकर्मी पूरी लगन से काम करते हैं.

हालांकि, इस कंपनी को शुरू करना रामराघव कुमार के लिए कभी आसान नहीं रहा है, क्योंकि अपनी कंपनी के प्रोडक्शन और मार्केटिंग करने के पीछे इनकी मेहनत और इनका कुछ करने का जुनून छिपा है, जिसमें इनको अपने परिजनों का भी पूरा सहयोग मिला.

सासा कलेक्शन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के निदेशक रामराघव कुमार बताते हैं कि मेरी प्रारंभिक शिक्षा मेंहूंस गांव में हुई थी. एसएस कॉलेज से बारहवीं करने के बाद मैंने बैचलर ऑफ टेक्सटाइल इंजीनियरिंग की पढ़ाई महाराष्ट्र के कोल्हापुर स्थित शिवाजी यूनिवर्सिटी से पूरी की. जिसके बाद कई सालों तक टीयूवी, एसयूवी कंपनी एंड मैट्रिक्स क्लोथिंग प्राइवेट लिमिटेड गुड़गांव में टेक्सटाइल इंजीनियर के तौर पर क्वालिटी मैनेजर के पद पर तैनात रहा.

''पिछले साल 2020 में जब देश में लॉकडाउन हुआ तो मैं भी अपने घर वापस आ गया. उस वक्त मुझे काफी दिनों तक गांव में रहने का मौका मिला. इंजीनियरिंग करने के बाद से अपने गांव मेंहूंस के लोगों के लिए कुछ करने की इच्छा थी. लॉकडाउन के दौरान गांव के लोगों को करीब से देखा. उनकी दयनीय दशा देखकर उनके हालात को बदलने की ठान ली. जिसको लेकर मैंने यहां टेक्सटाइल कंपनी स्थापित करने का सोचा.''-रामराघव कुमार, निदेशक, सासा कलेक्शन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी

उन्होंने बताया कि जब मैंने परिजनों से अपनी कंपनी शुरू करने की बात की तो सबने स्वीकृति दे दी. जिसमें मेरे पिता सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य सुरेंद्र कुमार विद्यार्थी, माता सेवानिवृत्त शिक्षिका सरस्वती देवी, सेना से सेवानिवृत्त अधिकारी भैया रामकृष्ण उर्फ सोनुजी और मेरी पत्नी शिक्षिका सविता कुमारी का भरपूर सहयोग मिला. इन लोगों ने न सिर्फ मेरी हौसला अफजाई की, बल्कि आर्थिक रूप से भी काफी सहयोग किया. जिसकी वजह से मेरी टेक्सटाइल कंपनी सासा कलेक्शन प्राइवेट लिमिटेड की शुरुआत हो गई.

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सासा कलेक्शन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के निदेशक रामराघव कुमार ने बताया कि मेंहूंस जैसे छोटे स्थान में तीस लाख की लागत लगाकर टेक्सटाइल कंपनी बनाने से एक्सपोर्ट कम्पनी से जुड़ने तक का सफर मेरे लिए आसान नहीं था. कंपनी की शुरुआत कर जब हमने रेडीमेड कपड़े निर्मित किए तो हमारे सामने सबसे बड़ी समस्या इसकी मार्केटिंग को लेकर हुई. जिसको लेकर मैंने स्थानीय जिला प्रशासन सहित कपड़ों से जुड़े व्यवसायियों से भी संपर्क किया. लेकिन, जब हमारे प्रोडक्ट नहीं बिके तो सबसे बड़ी समस्या कंपनी से जुड़े कर्मचारियों को पगार देने की हुई, जिसको लेकर मैं काफी दिनों तक परेशान रहा.

उन्होंने कहा कि जब स्थानीय बाजारों से निराशा हाथ लगी तो मैंने दिल्ली के विभिन्न एक्सपोर्ट कंपनियों से संपर्क साधा. आखिरकार एक डब्लू एंड ओरेलिया नामक कंपनी का साथ मिला जो देश विदेश में रेडीमेड कपड़ों को एक्सपोर्ट करती है. इसके लगभग पांच हजार कपड़ों का शोरूम भी है. डब्लू एंड ओरेलिया कंपनी को हमारे रेडीमेड कपड़े बहुत पसंद आए. डब्लू एंड ओरेलिया कंपनी के वाइस प्रेसिडेंट धर्मेंद्र कुमार से मिला, जो खुद एक बिहारी हैं. इन्होंने हमारे प्रोडक्ट का नमूना देखा और हमारी कंपनी से करारनामा कर लिया.

उन्होंने बताया कि उक्त कंपनी के प्रोडक्ट का उत्पादन हमारे मेंहूंस से ही होने लगा. ऐसे में देश विदेश के लोग मेंहूंस में बने कपड़े पहन रहे हैं. मेरी इच्छा है कि आने वाले वक्त में महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिले और इनको प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बनाने में सहयोग करूं, ताकि रोजगार के जरिये गरीब तबके की महिलाओं को किसी के सामने हाथ ना फैलाना पड़े.

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