शेखपुरा: जिले में कई गांव ऐसे है जहां लोग आज भी जलावन के लिए लकड़ी चुनने को मजबूर हैं. शेखपुरा के बरबीघा प्रखंड के विभिन्न गांव के महादलित टोले में जलावन के लिए लकड़ी चुनने के लिए कई परिवार मजबूर हैं. उनके पास उज्ज्वला योजना नाम की कोई जानकारी नहीं है या यूं कहे कि पेट्रोलियम कंपनियों की मनमानी की वजह से आज भी योजना सैकड़ो गरीब सरकारी योजनाओं से वंचित हैं. वहीं, केंद्र सरकार की ओर से कागजों पर ही इसे अधिकांश घरों तक पहुंचाने का दावा किया किया जा रहा है. लेकिन जमीनी स्तर पर ये दावे पूरी तरह से खोखले साबित हो रहे हैं.
शेखपुरा: जलावन के लिए लकड़ी चुनने को मजबूर महादलित परिवार, उज्जवला योजना से हैं वंचित
शेखपुरा के बरबीघा प्रखंड के विभिन्न गांव के महादलित टोलो में जलावन के लिए लकड़ी चुनने को आज भी कई महादलित परिवार मजबूर हैं. उज्ज्वला योजना की जानकारी का अभाव कहे या पेट्रोलियम कंपनियों की मनमानी लेकिन आज भी इस योजना से सैकड़ो गरीब परिवार वंचित हैं.
लकड़ी जलाकर करते हैं गुजारा
बरबीघा-शेखपुरा मुख्य सड़क मार्ग पर लकड़ी चुन रहे मिर्जापुर महादलित टोला के निवासी संगीता देवी ने बताया कि उन्होंने कई बार उज्जवला योजना से के तहत गैस लेने की कोशिश की. लेकिन वो उसमें सफल नहीं हो पाई. काफी संख्या में महिलाएं बच्चों संग सड़कों पर जलावन के लिए लकड़ी इकट्ठा करते देखी गई. उन्होंने बताया कि लकड़ी के साथ-साथ वे लोग दूसरे गांव से उपले खरीद कर जलावन में उसका प्रयोग करती हैं. हर महीने हजारों रुपये सिर्फ जलावन पर खर्च हो जाता है. बरसात के दिनों में सुखी लकड़ी और उपले की कमी होने के कारण इन महादलित परिवारों को जलावन के लिए काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. महिलाओं ने कहा कि सरकारी प्रतिनिधियों को गरीब परिवारों को चिन्हित कर उन्हें उज्जवला योजना का लाभ दिलाना चाहिए.
कोरोना में गरीब मजदूरों के हाल बेहाल
वहीं, दूसरे प्रदेशों से कोविड-19 महामारी के कारण लौटे प्रवासी मजदूरों को पेट चलाने के लिए भी काफी जद्दोजहद करना पड़ रहा है. सरकारी आदेशों पर जिलाधिकारी ने प्रवासी मजदूरों को 5 किलो चावल और 1 किलो चना देने का निर्देश तो दिया. लेकिन अधिकांश जगहों पर इसका वितरण आज तक नहीं किया गया. मिर्जापुर गांव निवासी हरिकांत मांझी ने बताया कि उसने अनाज के लिए डीलर के पास कई बार गए. लेकिन हर बार उसे अनाज के बदले बेज्जती मिली. हरिकांत मांझी जैसे अनगिनत महादलित परिवार 3 महीने पहले दूसरे प्रदेशों से लौटे हैं. धान की रोपनी करने से मिली मजदूरी से अभी तक वह अपना जीवन यापन कर रहे हैं. लेकिन इन्हे डर है कि मजदूरी का अनाज खत्म होने के बाद वे लोग दाने-दाने को मोहताज हो जाएंगे. गरीबों को मुहिम चलाकर नया राशन कार्ड निर्गत किया गया है. लेकिन इन्हे वहां भी निराशा ही हाथ लगी है. अधिकारियों की मिलीभगत से अमीरों और पहुंच वाले लोग नए राशन कार्ड में अपना नाम जुड़वाने में तो सफल रहे. लेकिन जरूरतमंद लोग आज भी इससे वंचित है.