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शेखपुरा में दाल कुआं की पानी से सैकड़ों लोग बनाते है खरना का प्रसाद, 500 वर्षों से चली आ रही परंपरा - Shershah Suri built well in Bihar

Chhath Puja 2023 In Sheikhpura: शेखपुरा में छठ व्रतियां हर साल दाल कुआं से पानी लेकर खरना का प्रसाद बनाती हैं. कहा जाता है कि बिहार से बंगाल जाने के क्रम में शेरशाह सूरी ने यह कुआं बनवाया था. जिससे लोग काफी पवित्र मानते हैं. कुछ लोगों का कहना है कि इसका नाम दाल कुआं इसलिए है क्योंकि यहां के पानी से दाल बहुत जल्दी गल जाती है.

Chhath Puja In Sheikhpura
शेखपुरा स्थित दाल कुआं की पानी से सैकड़ों लोग बनाते है खरना का प्रसाद

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Nov 18, 2023, 6:36 PM IST

शेखपुरा: लोक आस्था का महापर्व छठ शुरू हो गया है. जहां दूसरे दिन खरना का महाप्रसाद बनाया जाता है. मिट्टी के चूल्हे का इस्तेमाल करने के साथ-साथ प्रसाद बनाने में उपयोग होने वाले जल को कुएं से लाया जाता है. शेखपुरा में बरसों पुराने खांडपर स्थित दाल कुआं से आधी से ज्यादा आबादी जल भर कर ले जाती है और इसी जल से खरना का प्रसाद बनाया जाता है.

छठ में प्रसाद बनाने के लिए होता कुएं का इस्तेमाल:बता दें कि दाल कुएं का निर्माण कई वर्षो पहले शेरशाह सूरी के द्वारा कराया गया था. जब वे बिहार होते हुए बंगाल जा रहे थे. तब प्यास लगने पर उन्होंने पहाड़ की तलहटी में इसे बनाया था. इस साल कुआं से जल ले जाने के लिए लोग अपने कार, ठेला, बाइक, टेंपो, ई रिक्शा सहित अन्य वाहनों का इस्तेमाल करते हैं. खास तौर पर इस कुएं का इस्तेमाल छठ में प्रसाद बनाने के लिए होता है. छठ में खरना के दिन इस कुएं के समीप पैर रखने तक की जगह नहीं होती. लोग लाइन में लगकर बड़ी मशक्कत से जल भरकर ले जाते हैं. कोई भी मौसम हो यह कुआं कभी नहीं सूखता.

लाइन लगाकर लिया जाता है पानी

"छठ को लेकर दाल कुआं के पानी का महत्व आस्था से जुड़ा हुआ है. दादा परदादा के काल से लोग इस कुएं का पानी उपयोग करते हैं और खरना का प्रसाद बनाते हैं. अमीर-गरीब और आम से लेकर खास परिवारों के लोग भी खरना के दिन इसी कुएं के पानी को ले जाते हैं. साल भर दाल कुआं का पानी नहीं सूखता. इसके महत्व छठ में काफी बढ़ जाती है. इसे शेरशाह सूरी के द्वारा बनवाया गया था."- प्रेमनाथ मेहता, स्थानीय

बिहार से बंगाल जाने के क्रम में शेरशाह सूरी ने बनवाया था कुआं: शेखपुरा के दाल कुआं पर कब से छठ का प्रसाद बनाने के लिए इस जल का उपयोग किया जा रहा है यह किसी को नहीं पता. लेकिन कई जानकार बताते हैं कि 1534ई के आसपास शेखपुरा होकर बंगाल जाते वक्त पहाड़ काटकर रास्ता बनाने वाले शेरशाह ने यहां तलहटी में कुआं खुदवाया था. आज भी यह कुआं पूरी तरह सुरक्षित है. आज भी शेरशाह का नाम इस कुएं से जुड़ा हुआ है. आम लोग इसे शेखपुरा का ऐतिहासिक दाल कुआं भी कहते हैं. कुछ लोगों का कहना है कि इसका नाम दाल कुआ इसलिए है क्योंकि यहां के पानी से दाल बहुत जल्दी गल जाता है.

नवरात्रि में होता है भव्य आयोजन:आस्था और भक्ति के महान पर्व छठ के अवसर पर यहां पैर रखने की जगह नहीं होती. शहर भर से हजारों महिलाएं हर साल अपनी छोटे-छोटे बर्तन लेकर इस कुएं पर आती है. इसी कुएं के पानी से वह खरना(लोहंडा) का प्रसाद बनाती हैं. कुएं के पानी से उनकी आस्था का यह पवित्र अनुष्ठान संपन्न होता है. दाल कुआं के समीप राम जानकी का एक पुराना मंदिर भी स्थित है. साथ में यहां स्थानीय समिति के द्वारा दुर्गा पूजा का नवरात्रि में भव्य आयोजन भी किया जाता है.

दाल कुआं का अलग महत्व :काल के प्रवाह में कई परंपरा बह गई परंतु आज भी आस्था से जुड़े छठ महापर्व को लेकर अधिकांश लोग परंपराओं में बंधे हुए हैं. छठ से जुड़ी इन्हीं परंपराओं में 500 वर्ष पुराने शेखपुरा के दाल कुआं की महत्वता अभी तक बनी हुई है. शेखपुरा के अतीत को अपने सीने में दबाये और बदलाव के इस मुख्य साक्षी दाल कुआं से अब घरों में पीने का पानी नहीं जाता. शहर के लगभग सभी घरों में नल का पानी पहुंच चुका है. परंतु छठ महापर्व में खरना का प्रसाद बनाने के लिए सैकड़ो घरों में इसी पौराणिक दाल कुएं के पानी का इस्तेमाल होता है.

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