सारण: 'जिस क्षेत्र से राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और कई मुख्यमंत्री हुए हों उस क्षेत्र की भाषा को सरकारी मान्यता का ना मिलना अपने आप में शर्मिंदगी की बात है. लेकिन, अब दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना प्रदर्शन करके नहीं बल्कि भोजपुरी भाषा को सरकारी मान्यता दिलाने के लिए मुद्दा बनाकर लड़ना होगा' यह शब्द भोजपुरी क्षेत्र के प्रख्यात साहित्यकार मनोज भावुक के हैं. उन्होंने भोजपुरी क्षेत्र के प्रसार-प्रचार के लिए अनेकों काम किए. जिसे केवल भारत ने ही नहीं बल्कि पूरे विश्व ने सराहा है.
मनोज भावुक भोजपुरी के जाने माने युवा साहित्यकार, भोजपुरी भाषा के सुप्रसिद्ध कवि, फिल्म समीक्षक और एक भोजपुरी स्टॉर भी हैं. उन्होंने देश-विदेश में जाकर भोजपुरी का डंका बजाया है. ईटीवी भारत संवाददाता ने मनोज भावुक से खास बातचीत की.
भोजपुरी लेखक मनोज भावुक से बातचीत संवैधानिक दर्जा मिलने की बात कही
बातचीत के दौरान भोजपुरी साहित्यकार मनोज भावुक ने कहा कि बाहरी देशों में भोजपुरी भाषा को मान्यता मिली हुई है. लेकिन, अपने ही देश में इसे संवैधानिक दर्जा देने के लिए सकारात्मक प्रयास नहीं किया जा रहा है. जो नेता चुनाव के समय भोजपुरिया क्षेत्रों में आकर वोट मांगते हैं, उनलोगों से विनती है कि एकजुट हो और भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल कराने का मार्ग प्रशस्त करें.
जनप्रतिनिधियों को उठाना होगा बीड़ा
मनोज भावुक ने कहा कि भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर दिल्ली के जंतर-मंतर पर सैकड़ों बार धरना प्रदर्शन किया गया है. लेकिन, सरकार पर कोई असर नहीं हुआ. ऐसे में अब जरूरी है कि हम अपने क्षेत्रों के जनप्रतिनिधियों का घेराव करें.
मनोज भावुक से बात करते ईटीवी भारत संवाददाता साक्षात्कार की अहम बातें
- वोट के लिए नेता जनता को भोजपुरी भाषा में बात कर लुभाते हैं
- नेताओं को सकारात्मक प्रयास करने की जरूरत है
- सभी को साथ मिलकर काम करना होगा
- विदेश में मिल सकती है मान्यता तो भारत में क्यों नहीं?
- भोजपुरी भाषा उपेक्षित नहीं है, यह समझना होगा
- हमें भोजपुरी पर गर्व करना चाहिए