सारणः छ्परा के मरहौरा अनुमंडल में लगे औधोगिक इकाइयों के बदौलत सारण जिले का नाम भारत के औद्योगिक मानचित्र मे शुमार होता था. एक समय में यहां कानपुर शुगर वर्क्स, सारण इंजीनियरिंग, शराब फैक्ट्री और चाकलेट बनाने वाली बिड़ला ग्रुप की फैक्ट्रियों में खूब उत्पादन होते थे. मरहौरा में 24 घंटे चिमनियों से धुआं निकलता रहता था. कर्मचारी तीनों शिफ्ट मे कार्य करते थे. लेकिन वर्तमान में सभी फैक्ट्रियां वीरान पड़ी है.
करोड़ों रुपये का भुगतान है बाकी
सन 1997 के बाद से इन फैक्ट्रियों पर संकट के बादल छाने लगे. कानपुर शुगर वर्क्स के मजदूरों और किसानों को भुगतान नहीं किया जाने लगा. जिसके बाद प्रमोटर के रुप में जायसवाल ने इसे चलाने की कोशिश की, लेकिन ज्यादा दिनों तक नहीं चला सके. चिनी मिल के एक पूर्व कर्मी गणपत प्रसाद यादव ने कहा कि गन्ना किसानों के साढे पांच करोड़ और कर्मियों के 18 करोड़ रुपये का भुगतान बाकी है. उन्होंने कहा कि चीनी मिल की जमीन को बेच दिया जाए तो सभी का भुगतान हो जाएगा.