सारणः लॉकडाउन के समय दूसरे राज्यों से लौटे प्रवासी मजदूर बेरोजगार हो गए. राज्य में कल कारखानों की कमी की वजह से उन्हें रोजगार नहीं मिल पाया. वहीं, जिले के छपरा मढ़ौरा चीनी मिल कई सालों तक बंद रहने से अब खंडहर में तब्दील हो चुका है. जिससे कई लोगों को रोजी-रोटी मिल सकती थी.
1904 में हुई थी स्थापना
छपरा-मढ़ौरा चीनी मिल चुनावी मुद्दा तो बनता है. लेकिन फिर कुछ समय बाद यह ठंडे बस्ते में चला जाता है. इसकी स्थापना 1904 में हुई थी. मिल खुलने से लगभग बीस हजार परिवारों को रोजगार मिला था. साथ ही गन्ना किसान भी मिल शुरू होने से काफी खुश थे. लेकिन 1998 आते-आते यह मिल पूरी तरह से बंद हो गया. इसके साथ ही जितने परिवार इससे जुड़े थे या गन्ना किसान सभी की रोजी रोटी पर आफत आ गई.
मिल पर खूब हुई राजनीति
बता दें कि 2015 के विधानसभा चुनाव के समय चीनी मिल पर खूब राजनीति हुई. प्रधानमंत्री ने चुनावी सभा में इस फैक्ट्री को फिर से शुरू करने का वादा भी किया. लेकिन चार साल बीत जाने के बाद भी यहां की जनता मिल शुरू होने का इंतजार करती रह गई.
कई परिवारों की छिन गई रोजी-रोटी
स्थानीय असिफ ने बताया कि इसमें काम करने वाले परिवारों की रोजी रोटी छिन गई. जिससे कई लोग पलायन कर गए वहीं, कई ठेला लगा फुटपाथी दुकान चलाने लगे. उन्होंने बताया कि अगर सरकार चीनी मिल का जीर्णोद्धार करती है तो आने वाले समय में फिर से यहां किसानों और अन्य लोगों के चेहरे पर खुशियां लौट आएंगी.
गन्ना किसानों के चेहरे की चमक
वहीं, मढ़ौरा के आरजेडी विधायक जितेंद्र कुमार राय ने बताया कि चीनी मिल अब खंडहर हो चुका है. डबल इंजन की सरकार इसके लिए कुछ नहीं कर रही है. हमलोग लगातर इस मुद्दे को उठाते रहे हैं. उन्होंने कहा कि अगर आरजेडी सत्ता में आती है तो चीनी मिल को पुनःस्थापित कराया जाएगा. अब देखना होगा कि आगामी विधानसभा चुनाव के बाद गन्ना किसानों के चेहरे की चमक लौटती है या मिल फिर से एक चुनावी मुद्दा बन कर रह जाएगा.